________________
भी जैन सिद्धान्त बोल सप्रह, चौथा भाग २७७ (१) हैरण्यक (सुनार)- सुनार के कार्य में प्रवीण पुरुष रात्रि के गाढ़ अन्धकार में भी हाथ के स्पर्शमात्र से सोना चॉदी भादि को यथावस्थित जान लेता है।
(२) करिसए (कृपक)-किसी चोर ने एक बनिये के घर में ऐसी चतुराई से सांघ लगाई कि उसका श्राकार कमल के सरीखा बना दिया। प्रातः काल उसे देख कर बहुत लोग घोर की चतुराई की प्रशंसा करने लगे। चोर भी वहाँ आकर चुपके से अपनी प्रशंसा सुनने लगा। वहाँ एक किसान खड़ा था, उसने कहा कि शिक्षित श्रादमी के लिए क्या मुश्किल है ? किसी एक कार्य में प्रवीण व्यक्ति यदि उस कार्य को विशेष चतुराई के साथ करता है तो इसमें क्या आश्चर्य है ? किसान की बात को सुन कर चोर को बड़ा गुस्सा आया। उसने उस किसान का नाम और पता पूछा। इसके बाद एक समय वह हाथ में तलवार लेकर उस किसान के पास पहुंचा और कहने लगा कि मैं तुझे अभी मार देता है। किसान ने इसका कारण पूछा। तब चोर ने कहा कि तूने उस दिन मेरे द्वारा लगाई गई पद्माकार सान्ध की प्रशंसा क्यों नहीं की ? निर्भय होकर किसान ने जवाब दिया कि मैंने जो बात कही थी वह ठीक थी क्योंकि जो व्यक्ति जिस विषय में अभ्यस्त होता है वह उस कार्य में अधिक उत्कर्पता को प्राप्त हो जाता है। इस विषय में मैं स्वयं उदाहरण रूप हूँ। मेरे हाथ में मूंग के ये दाने हैं। यदि तुम कहो
तो मैं इनको इस तरह से जमीन पर डाल सकता हूँ कि इन सब . का मुंह ऊपर, नीचे, दाएं या बाएं किसी एक तरफ रह जाय ।
तब चोर ने कहा कि इन मूंगों को इस तरह डालो कि सब का मुंह नीचे की तरफ रह जाय । जमीन पर एक कपड़ा बिछा दिया गया
और किसान ने उन दानों को इस तरह डाला कि सब अधोमुख गिर गये । यह देख कर चोर बड़ा विस्मित हुआ और किसान