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श्री सेठिया जैन प्रन्यमाना
चकित होकर उसने कहा-वह तपस्वी क्या करेगा १ चेलना का अभिप्राय था कि जब एक हाथ बाहर निकलने से मुझे इतनी सर्दी मालूम पड़ने लगी तो उस तपस्वी का क्या हाल होगा जिसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं है । विना किसी प्रोट के जंगल में खड़ा है। शरीर तपस्या से सूख कर कांटा हो रहा है। ऐसी भयङ्कर सर्दी में वे क्या करेंगे? चेलना के वाक्य का अभिप्राय श्रीणिक ने दूसरा ही समझा । उस के मन में आया-चेलना ने किसी को संकेत दे रक्खा है। मेरे पास में होने के कारण यह उस के पास नहीं जा सकती, इस लिए दुखी हो रही है। मन में यही विचारते हुए श्रेणिक राजा की रात बड़ी कठिनता से पीतो । सुबह होते ही वह भगवान् के पास चला। सामने अभयकुमार दिखाई दिया। श्रोणिक ने क्रोधावेश में उसे आज्ञा दी-सभी रानियों के साथ अन्तःपुर को जला दो। अभयकुमार ने सोचा-क्रोधावेश में महाराज ऐसी आज्ञा देरहे हैं। क्रोध में निकले हुए वचन के अनुसार किया जाय वो उसका परिणाम अच्छा नहीं होता, किन्तु बड़े की
आज्ञा का पालन भी अवश्य करना चाहिए। यह सोच कर उसने एक सूनी पड़ी हुई हस्तिशाला के भाग लगवा दी। प्राग का धूंश्रा ऊपर उठने लगा | अभयकुमार भी भगवान को वन्दना करने के 'लिए चल दिया।
भगवान् के समवसरण में पहुँच कर श्रोणिक राजा ने पूछाभगवन! चेलना एक की पत्नी है या अनेक की १ मगवान् ने उत्तर दिया- एक की श्रोणिक राजा अभयकुमार को मना करने के लिए जन्दी से घर की तरफ लौटे। मार्ग में सामने आते हुए अभयकुमार को देख कर उन्होंने पूछा-क्या अन्तःपुर को जला दिया ? उसने कहा- जला दिया । राजा ने क्रोधित होकर कहा- उसमें पड़ कर तू स्वयं भी क्यों नहीं जल गया? अभयकुमार ने उचर दिया