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________________ - मी जेन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग दोनों की खींचातानी में दही का घड़ा फूट गया। इसके बाद जाम्बवती और कृष्ण ने अपना स्वाभाविक रूप धारण कर लिया। यह देख कर शम्भ भाग गया और उत्सव बादि अवसरों पर भी राजपरिवार में पाना छोड़ दिया। एक पर कृष्ण ने कुछ बड़े आदमियों को उसे मना कर लाने के लिए कहा । वह बड़ी कठिनता से हाथ में बाँस ले कर चाकू से उसकी कील घड़ता हुआ दरवार में श्राया।प्रणाम करने पर कृष्ण ने पूछा-यह क्या पड़ रहे हो? उसने उत्तर दिया-यह कील है। जो बीती हुई बात को कहेगा उसके मुंह में ठोकने के लिए पड़ रहा हूँ। शम्ब का अपनी माता को अहीरनी समझना अननुयोग है। पाद में ठीक ठीक जानना अनुयोग है। (१२) श्रेणिक के कोप का उदाहरण-एक.वार भमण भगवान् महावीर राजगृह नगर में पधारे। श्रेणिक महाराज अपनी रानी चेलना के साथ भगवान् को वन्दना करने गए। उन दिनों माष महीने की भयङ्कर सर्दी पड़ रही थी। ओस के कारण वह और बढ़ गई थी। लौटते समय मार्ग में चेलना ने कायोत्सर्ग किए हुए किसी पडिमाधारी साधु को देखा। तप के कारण कश बने हुए उनके शरीर पर कोई पस्न न था, फिर भी वे मेरु के समान निश्चल खड़े थे। चेलना उन्हें देख कर आश्चर्य करने लगी और मन में उन्हीं का ध्यान करती हुई घर गई। रात को सर्दी दूर करने के लिए पेजना रजाई आदि बहुत से गरम तथा कोमल वन भोढ़ कर पलंग पर सोई । सोते सोते उसका एक हाथ रजाई से बाहर निकल गया । सर्दी के कारण हाथ सुम । हो गया। सारे शरीर में सर्दी पहुँचने के कारण चेलना की नींद खुल गई । उसने हाथ को रजाई के अन्दर कर लिया। उसी समय उसे मुनि का ध्यान भाया। उनके गुण और कठोर तपश्चर्या पर
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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