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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
ऐसी जगह कहना चाहिए, आप लोग सदा ऐसा ही देखें। यह सम्बन्ध सदा बना रहे । यहाँ कभी वियोग न हो। आगे बढ़ने पर उसने बेड़ी में बंधे हुए एक राजा को देख कर ऊपर वाली वात कही। पीटने के बाद उसे सिखाया गया-ऐसी जगह कहना चाहिए कि इससे शीघ्र छुटकारा मिले। ऐसा कभी न हो । यही बात उसने आगे जाकर कही । वहाँ दो राजा बैठे हुए सन्धि की बातचीत कर रहे थे। उन्होंने भी उसे पीटा।
इस प्रकार जगह जगह मार खाता हुआ ग्रामीण नगर में पहुँचा। वहाँ किसी ठाकुर के यहाँ नौकरी करने लगा। ठाकुर की सम्पत्ति तोनष्ट हो चुकी थी किन्तु पुराना श्रादर सन्मान अवश्य था। एक दिन ठाकुर साहेब किसी सभा में गए हुए थे। ठकुरानी ने घर में खट्टी राव तैयार की और ठाकुर को बुलाने के लिए उसे कहाठाकुर को जाकर कहो कि राव ठण्डी हो रही है । फिर खाने लायक नहीं रहेगी। ग्रामीण ने सभा में जाकर जोर से चिल्ला कर कहाठाकुर साहेब ! घर चलो । राव ठण्डी हो रही है । जन्दी से खालो।
ठाकुर साहेव सभा में बैठे हुए थे, इम लिए उन्हें बहुत क्रोध आया |घर श्राकर ग्रामीण को पीटा और उसे सिखाया कि जब ' सभा में बैठे हों तो घर की बातें इस प्रकार न कहनी चाहिये। घर की वात मुँह पर कपड़ा रख कर कुछ देर ठहर कर धीरे धीरे कान में कही जाती है। कुछ दिनों के बाद ठाकुर के घर में भाग लग गई। ठाकुर सभा में गया हुआ था । ग्रामीण वहाँ जाकर खड़ा हो गया। काफी देर खड़े रहने के बाद उसने धीरे से ठाकुर के कान में कहा- घर में आग लग गई।ठाकुर घर की तरफ दौड़ा । उसका सारा घर जल चुका था । ग्रामीण को बहुत अधिक पीटने के बाद उसने कहा-मूर्ख ! जब धुंबा निकलना शुरू हुआ तभी तुमने उस पर पानी, धूल या राख वगैरह क्यों नहीं डाली? उसी समय