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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग (४) प्राभृत - क्षेत्र का संस्थान । (५) प्रामृत - लेश्या (ताप) का प्रतिघात । (६) प्राभृत- सूर्य के प्रकाश का वर्णन | (७) प्रामृत - प्रकाश का संकोच -1 (८) प्राभृत- उदय और अस्त का परिमाण ।
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(१०) प्रामृत - (१) प्रतिप्रामृत - नक्षत्रों का योग । (२) प्रति प्राभृत-नक्षत्रों की मुहूर्तगति । सूर्य और चाँद के साथ नक्षत्र का काल । (३) प्रतिप्राभृत-- नक्षत्रों का दिशाभाग । (४) प्रतिप्राभृतI युगादि में नक्षत्रों के साथ योग । (५) कुल और उपकुल नक्षत्र । (६) पूर्णिमा और श्रमावास्या । पर्व, तिथि तथा नक्षत्र निकालने । की विधि | बारह श्रमावास्याच्चों के नक्षत्र । श्रमावास्या के कुलादि नक्षत्र । पाँच संवत्सरों की अमावास्याएं ।७ नक्षत्रों का सन्निपात । (८) नक्षत्रों के संस्थान | (8) नक्षत्रों में तारों की संख्या । (१०) अहोरात्र में पूर्ण नक्षत्र । नक्षत्रों के महीने और दिन । (११) चन्द्र का नक्षत्र मार्ग | सूर्यमण्डल के नक्षत्र । सूर्यमण्डल से ऊपर के नक्षत्र । (१२) नक्षत्रों के अधिष्ठाता । (१३) तीस मुहूर्तों के नाम । (१४) तिथियों के नाम । (१५) तिथि निकालने की विधि | (१६) नक्षत्रों के गोत्र । (१७) नक्षत्रों में भोजन 1 (१८) चन्द्र और सूर्य की गति । (१६) वारह महीनों के नाम । ( २० ) पाँच संवत्सरों का वर्णन । (२१) चारों दिशाओं के नक्षत्र । (२२) नक्षत्रों का योग, भोग और परिमाण ।
(११) प्रामृत - संवत्सर के आदि और अन्त ।
(१२) प्रामृत -- संवत्सर का परिमाण । पाँच संवत्सर के महीने, दिन और मुहूर्त । पाँच संवत्सरों के संयोग से २६ भांगे । ऋतु और नक्षत्रों का परिमाण । चन्द्र नक्षत्र के शेष रहने पर आवृत्ति ।