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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २९६ (८) प्रामृत-उदय मस्त परिमाण । (६) प्राभूत-पुरुष छाया परिमाण।
(१०) प्रामत-इसमें वाईस प्रतिप्राभूत हैं। उनमें नीचे लिखे विषय हैं-(१)नक्षत्रों का योगा(२)नक्षत्र मुहूर्त गति। सूर्य और चन्द्र के साथ नक्षत्रों का काल ।(३) नक्षत्र दिशा भाग। (१) युगादि के नक्षत्र और उनका योग । चन्द्र के साथ नक्षत्रों का योग। (५) कुल और उपकुल नक्षत्र । (६) पूर्णिमा और अमावस्या । पूर्णिमा में नक्षत्रों का योग । पर्व, तिथि तथा नक्षत्र निकालने की विधि | सभी नक्षत्रों के मुहूर्त । पाँच संवत्सरों की पूर्णिमा के नक्षत्र । बारह अमावस्याओं के नक्षत्र । अमावस्या के कुल आदि नक्षत्र । पाँच संवत्सरों की अमावस्याएं। (७) नक्षत्रों का सभिपात | अमावास्या और पूर्णिमा केकुल तथा उपकुल में नक्षत्र । , (८)नक्षत्रों के संस्थान (ब) नक्षत्रों के तारों की संख्या (१०) अहोरात्रि में पूर्ण नक्षत्र नक्षत्रों के महीने और दिनों का यन्त्र । (११) चन्द्र नक्षत्र मार्ग । सूर्यमण्डल के नक्षत्र । सूर्यमण्डल के ऊपर के नक्षत्र । (१२) नक्षत्रों के अधिष्ठाता देव । (१३) तीस मुहूर्त के नाम । (१४)तिथियों के नाम । (१५) तिथि निकालने की विधि । (१६)नक्षत्रों के गोत्र । (१७) नक्षत्रों में भोजन । (१८) चन्द्र सूर्य की गति । (११) बारह महीनों के नाम (२०) पाँच संवत्सरों का वर्णन | (२१) चारों दिशाओं के नक्षत्र । (२२) नक्षत्रों का योग वथा वियोग । नक्षत्रों के भोग का परिमाण। .
(११) प्राभत-संवत्सर के श्रादि और अन्त ।
(१२) प्राभृत- संवत्सर का परिमाण । पाँच संवत्सरों के महीने, दिन और मुहूर्त । पाँच संवत्सरों के-संयोग के २६ भांगे । ऋतुनक्षत्र का परिमाण । शेष रहने वाले चन्द्र, नक्षत्र तथा उनकी आवृत्ति आदि का वर्णन ।