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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २१६ खजाने में, तीसरा अन्तःपुर की रक्षा के लिए और चौथा भाग अर्थात् पौने दो हजार गाँवों की आमदनी दानशाला आदि परोपकार के कार्यों के लिए इस प्रकार राज्य का विभाग कर राजा परदेशी अपनी पौषधशाला में उपवास पौषध आदि करता हुमा धर्म में तल्लीन रहने लगा।अपने विषयोपभोग में अन्तराय पड़ती देख रानी सूर्यकान्ता ने राजा को जहर दे दिया। जब राजा को इस बात का पता लगा तो वह पौषधशाला में पहुंचा । रानी पर किञ्चिन्मात्र द्वेष न करता हुमा राजा संलेखना संथारा कर धर्मध्यान ध्याने लगा ।समाधि पूर्वक मरण प्राप्त कर राजा प्रथम देवलोक के सूर्याम विमान में सूर्याम देव रूप से उत्पन हुआ। वहाँ चार पन्योपम की आयु पूरी करके महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। प्रव्रज्या अङ्गीकार कर मोक्ष में जायगा।
(३) जीवा जीवाभिगम सूत्र यह सूत्र तीसरे अङ्ग ठणांग का उपांग है । इसका नाम है जीवा जीवाभिगम। इसमें जीवों के चौवीस स्थान (दण्डक', अवगाहना, आयुष्य, अल्पबहुत्व, मुख्य रूप से ढाई द्वीप तथा सामान्य रूप से समी द्वीप समुद्रों का कथन है । ठाणांग सूत्र में संक्षेप से कही गई बहुत सी वस्तुएं यहाँ विस्तारपूर्वक बताई गई हैं। इसमें नीचे लिखे विषय हैं
(१)प्रतिपत्ति-नवकार मन्त्र । जिनवाणी जीव तथा अनीव के अभिगम अर्थात् स्वरूपविषयक प्रश्न | अरूपी और रूपी जीव के मेद । सिद्ध भगवान् के प्रकार व १५ मेद । संसारी जीवों की संक्षेप में नौ प्रतिपत्तियाँ । तीन स्थावरों के मेदानुमेद और उन पर अलग अलग तेईस द्वार।
(२)प्रतिपत्ति-तीनों वेदों के मेद प्रमेद स्त्रीवेद की स्थिति के विविध प्रकार स्त्रीवेद के अन्तर तथा अन्पबहुत्त । स्त्रीवेद रूप