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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल साह, चौथा भाग २७ में मतभेद है। कोई आचार्य इसे 'राजप्रसेनकीय' और कोई इसे 'राजप्रसेनजित' नाम से कहते हैं किन्तु इसका 'रायपसेणीय' यह नाम ही उपयुक्त प्रतीत होता है । इहमें राजा परदेशी के प्रश्नोत्तर होने से यही नाम सार्थक है। यह सत्र सूयगडांग सूत्र का उपाङ्ग है। सूयगडांग सूत्र में क्रियावादी अक्रियावादी आदि ३६३ पाखण्ड मतों का वर्णन है । राजा परदेशी भी अक्रियावाद को मानने वाला था और इसी के आधार पर उसने केशीश्रमण से जीवविषयक प्रश्न किये थे। अक्रियावाद का वर्णन सूयगडांग सूत्र में है उसी का दृष्टान्त द्वारा विशेष वर्णन रायपसेणी सूत्र मे है यह उत्कालिक सूत्र है। इस सूत्र में मुख्य रूप से राजा परदेशी का वर्णन दिया गया है। इसके अतिरिक चित्त सारथि, भगवान महावीर, केशीकुमार श्रमण, राना जितशत्र, भामलकन्या नगरी का राजा सेय और उसकी रानी धारिणी, राजा परदेशी की रानी सूर्यकान्ता, उसका पुत्र सूर्यकान्त आदि व्यक्तियों का वर्णन है। श्रामलकल्या नगरी, श्रावस्ती नगरी, श्वेताम्बिका नमरी, केकय देश, कुणालदेश आदि स्थलों का भी विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। इस वर्णन से उस समय की नगर रचना, राना और प्रजा की स्थिति, देश की स्थिति आदि का भली प्रकार ज्ञान होजाता है। सूत्र में वर्णित कथा का सारांश इस प्रकार है ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भगवान महावीर स्वामी भामलकल्पा नगरी में पधारे । श्रात्रशाल वन में अशोक वृक्ष के नीचे एक विशाल पृथ्वीशिलापट्ट पर विराजे । देवताओं ने समवसरण की रचना की। जनता भगवान का धर्मोपदेश सुनने के लिये आई। सौधर्म कल्प के सूर्याम विमान में सूर्याम देव आनन्द पूर्वक बैठा हुआ था। उसके मन में भगवान को बन्दना करने के लिये जाने
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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