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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
• बीसवाँ शतक (१) उ० बेइन्द्रिय आदि जीवों के शरीर बन्ध का क्रम, लेश्या, संज्ञा, प्रज्ञा आदि का कथन, तेइन्द्रिय और चौरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी प्रश्न । पन्नवणा सूत्र की भलामण । पञ्चे न्द्रिय जीव चार पाँच मिल कर एक शरीर नहीं बाँधते इत्यादि ।
। (२) उ०-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि के अभिवचनों (पर्याय नामों ) का कथन । ।
(३) उ०--प्राणातिपात आदि आत्मा के सिवाय नहीं परिणमते हैं । गर्भ में उपजता हुआ जीव कितने वर्ण, गन्ध आदि से परिणत होता है ? चारहवें शतक के पॉचवे उहशे की भलामण।
(४) उ०-इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का है ? पनवणा के पन्द्रहवें इन्द्रिय पद के दूसरे उद्देशे की भलामण ।
(५)-उ०--परमाणु में वर्णादि की वक्तव्यता, वर्ण, गन्ध आदि की अपेक्षा द्विप्रादेशिकस्कन्ध के ४२ मांगे, त्रिप्रादेशिकस्कन्ध के १२० भांगे, चतुः प्रादेशिकस्कन्ध के २२२ भांगे, पञ्चप्रादेशिक स्कन्ध के ३२४ मांगे, प्रादेशिक स्कन्ध के ४१४ भांगे, सातप्रादेशिक स्कन्ध के ४७४ माँगे, भ्रष्टप्रादेशिक स्कन्ध के ५०४ मांगे, नवप्रादेशिक स्कन्ध के ५१४ भाँगे। दस प्रादेशिक स्कन्ध के ५१६ मांगे। मृदु, कर्कश आदि स्पर्शों के मांगे । बादर स्कन्ध के स्पर्श की अपेक्षा १२९६ माँगे । परमाणु के द्रव्य, क्षेत्र काल, भाव की अपेक्षा भिन्न भिन्न रीति से माँगे।
(६) उ०-रत्नप्रभा और शकराप्रभा के बीच से मर कर सौधर्म श्रादि में उत्पन्न होने वाले पृथ्वी कायिक, अप्काकिय आदि जीवों की उत्पति और आहार का पौर्वापयं ( पहले पीछे) का वर्णन ।
(७) उक-ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध, उदय, स्त्रीवेद का बन्ध, दर्शनमोहनीय कर्म के बन्ध आदि का कथन ।