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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला यही प्रश्नोत्तर । न रयिक आदि जीव धागे के भव का आयुष्य बाँध कर मरते हैं। देवों की इष्ट और अनिष्ट विकुर्वणा।
(६)उ०- गुड़, भ्रमर, कोयल आदि निश्चय नय से पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाले होते हैं। इसी प्रकार द्विप्रादेशिक, त्रिदेशिक यावत् अनन्त प्रादेशिक स्कन्ध में वर्णादि की वक्तव्यता की गई है।
(७) उ०-यक्षाविष्ट केवली सत्य और असत्य, सावद्य और निरवद्य भाषा बोलता है ऐसा अन्ययूथिकों का मन्तव्य । उपधि के सचित्त, अचित्त और सचित्ताचित्त तीन भेद, प्रणिधान के दो मेद, मदुक श्रमणोपासक का अधिकार। देवों, का विकुर्वण सामर्थ्य, देवासुर संग्राम, देवों का गमन सामर्थ्य, देवों के पुण्यकर्म के क्षय का तारतम्य ।
(८) उ०-भावितात्मा अनगार के पैर नीचे दब कर यदि कोई जीव मर जाय तो ईर्ष्यापथिकी क्रिया लगती है। छमस्थ के ज्ञान का विषय, अन्य यूथिकों का गौतम स्वामी से प्रश्नोत्तर, अवधिज्ञानी के ज्ञान का विषय, ज्ञान और दर्शन के समय की भिन्नता।
() उ०-- भव्य द्रव्य नैरयिक यावत् वैमानिक देवों तक के आयुष्य का कथन ।
(१०) उ० वैक्रिय लब्धि का सामर्थ्य, वस्ति और वायुकाय की स्पर्शना, रत्नप्रभा और सौधर्म देवलोक के नीचे के द्रव्य । वाणिज्य ग्राम के सोमिल ब्राह्मण की यात्रा, यापनीय, अव्यावाध और प्रासुक विहार आदि के विषय में प्रश्न, सरीसव (सरसों). और कुलत्था भक्ष्य हैं या अभक्ष्य इत्यादि का निर्णय ।
उन्नीसवाँ शतक . - (१४२) उ०-लेश्या का अधिकार । श्री पन्नवणा सूत्र के