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________________ १६२ श्रायुबन्ध श्रादि प्रश्न | (२) उ०- उन्माद के भेद, नारकियों को कितनी तरह का उन्माद होता है ? क्या सुरकुमार, इन्द्र, ईशानेन्द्र यदि वृष्टि और तमस्काय करते हैं ? इत्यादि प्रश्नोत्तर | श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला (३) उ० - महाकाय देव या असुरकुमार भावितात्मा अनगार के बीच में होकर जाने में समर्थ है या नहीं ? क्या नैरयिक, असुरकुमार, तिर्यञ्च पञ्च ेन्द्रिय यादि में विनय, सत्कार, श्रासनप्रदान आदि हैं ? क्या मनुष्य में विनय, सत्कारादि हैं ? अन्य ऋद्धि वाला देवता महर्द्धिक देवों के बीच से, समद्धिक देवता समर्द्धिक देवों के बीच से जाने में समर्थ है या नहीं ? वीच से जाने वाला देव शस्त्र 'प्रहार करके जा सकता है या बिना शस्त्र प्रहार किए ही जा सकता है ? (४) उ०- भूत, भविष्यत् और वर्तमान में पुद्गल का परिणाम, भूत, भविष्यत् और वर्तमान में जीव का परिणाम, परमाणुपुद्गल शाश्वत, अशाश्वत, चरम, अचरम आदि प्रश्नोत्तर | (५) उ०- क्या नैरयिक, असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार अनिकाय के बीच से होकर जाने में समर्थ हैं ? नैरयिक अनिष्टरूप, श्रनिष्टशब्द आदि दस स्थानों को भोगते हैं । पृथ्वीकायिक छः 'स्थानों को, वेइन्द्रिय दस स्थानों को, तेहन्द्रिय आठ स्थानों को, चौरिन्द्रियनंव स्थानों को, तिर्यश्च पञ्चेन्द्रिय, मनुष्य, वाणन्यन्तर, ज्योतिषी वैमानिक दस दस इष्ट अनिष्ट रूप स्थानों को भोगते हैं । महर्द्धिक देव क्या बाहरी पुद्गलों को लिए बिना पर्वत, भीत आदि को उल्लंघन करने में समर्थ है ? इत्यादि प्रश्नोत्तर | · (६) उ० – नैरयिक वीचिद्रव्य का आहार करते हैं या अवीचि द्रव्य का १ नैरयिकों के परिणाम, आहार, योनि, स्थिति आदि का विचार | शक्र ेन्द्र और ईशानेन्द्र को भोग भोगने की इच्छा होने पर किस प्रकार की विकुर्वणा करते हैं ? इत्यादि प्रश्नोत्तर |
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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