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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
तेरहवां शतक (१) रत्नप्रभा, शर्कराप्रमा श्रादि सात नरकों में नरकावासों की संख्या, उनका विस्तार । कितने जीव एक साथ नरक में उत्पन्न हो सकते हैं और कितने वहाँ से निकल सकते हैं ? किस लेश्या वाला जीव किस नरक में उत्पन्न होता है इत्यादि विचार ।
(२) उ०-देवताओं के मेद, देवताओं के विमानों की संख्या, उनकी लम्बाई चौड़ाई । असुरकुमारावास में एक समय में कितने जीव उत्पन्न हो सकते हैं ? इसी तरह अनुत्तर विमानों तक उत्पाद और उद्वर्तना विषयक प्रश्न । किस लेश्या वाला जीव कौनसे देवलोक में उत्पन्न हो सकता है ? इत्यादि अनेक प्रश्नोत्तर।
(३) उ०-नारकी जीवों के बाहार आदि के विषय में प्रश्न । उत्तर के लिए श्री पनवणा के परिचारणा पद की भलामण ।
(४) उ०-नरक, नरकावास, वेदना, नरकों का विस्तार । ऊप्रलोक और तिर्यग्लोक का विस्तार आदि। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि का जीवों और अजीवों के प्रति उपकार, अस्तिकायों के एक प्रदेश, दो प्रदेश,तीन प्रदेशआदि की वक्तव्यता। आठ रुचक प्रदेश और उनसे दिशाओं का विचार। लोक संस्थान सम विपम आदि का विचार।
(५) उ०-नैरयिक, सचित्त, अचित्त या मिश्र पाहार करते हैं। उत्तर के लिए श्री पनवणा सूत्र के श्राहार पद की भलामण ।
(६) उ०-नैरयिक अन्तर सहित उत्पन्न होते हैं या अन्तर रहित ? चमरेन्द्र और उसकी चमरचञ्चा राजधानी का वर्णन । चम्पा नगरी, सिन्धुसौवीर देश, उदायन राजा, प्रभावती रानी। उदायन राजा का भगवान महावीर स्वामी के चन्दन के लिए जाना। . अपने भाणेज केशीकुमार को राज्य भार देकर दीक्षा लेने का संकल्प, दीक्षा ग्रहण करना । उदायन राजा के पुत्र अमिचि