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________________ मप्रन्थमाला ४६ . श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कर वायु होना, स्पृष्ट, अस्पृष्ट, सशरीरी, अशरीरी आदि वायु सम्बन्धी विस्तृत विचार । श्रोदन, कुरुमाप, मदिरा आदि के शरीर सम्बन्धी प्रश्न | लवण समुद्र का चक्रवाल विष्कम्भ, लोकस्थिनि । मादि का विचार। (३)30 जाल मंदी हुई अन्थियों गाँठो)का दृष्टान्त देकर एक ही भव में और एक ही समय में एक ही जीव इस भव और पर भव सम्बन्धी आयुष्य का बेदन करता है, अन्य तीर्थकों के इस प्रकार के कथन का खएडन। (४) 30-छमस्थ मनुष्य शंख, शृङ्ग, मृदङ्ग आदि का शर सुनता है। छमस्थ कषाय मोहनीय के उदय से हँसता है और सात या आठ कर्मों को बाँधता है । केवली नहीं हँसता । छन्नरथ मनुष्य दर्शनाबरणीय कर्म के उदय से निद्रा लेता है। निद्रा लेता हुश्रा सात पाठकर्म . माँघता है, किन्तु केवली नहीं बाँधता । हिरणगमेषी देव द्वारा स्त्री के गर्भ के संहरण विषयक विचार। अतिमुक्त कुमार का जल में पात्रीतिराने का अधिकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से महाशुक्र के देवतामन द्वारा प्रश्नोनर करते हैं। देवों की भाषा विषयक विचार । केवली अन्तिम शरीर को देखते हैं। केवली की तरह छमस्थ भी अन्तिम शरीर को देखने में समर्थ होता है या नहीं ? फेवली. प्रष्ट मन और वचन को धारण करता है । अनुत्तर विमानवासी देव अपने विमान में बैठा हुआ ही केवली के साथ पालाप संलाए करने में समर्थ होता है। अनुत्तरोपपातिक देव उदीर्णमोह, क्षीणमो? नहीं होते किन्तु उपशान्तमोह होते हैं। क्या केवली इन्द्रियों से जानते और देखते हैं। चौदह पूर्वधारी एक घड़े से हजार घड़े, एक, कपड़े से हजार कपड़े निकालने में समर्थ है इत्यादि प्रश्न। (५)उ०-वस्थ मनुष्य अतीत, अनागत समय में सिद्ध होता है इत्यादि प्रश्न । उचर के लिए पहले शतक के चौथे उहशे की
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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