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श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, चौथा भाग __ _ १३३ योजन ऊँचा तथा १०० कोस उवध वाला है। सभी कांचन पर्वत १०० योजन ऊंचे, १०० कोस उद्वध वाले तथा मूल में १०० योजन विष्कम्भ वाले हैं।
भगवान चन्द्रप्रभ की १५० धनुष की अवगाहना थी। आरण कल्प में १५० विमान हैं। अच्युतकल्प में भी १५० विमान हैं।
सुपार्श्वनाथ भगवान् की अवगाहना २०० धनुष है । प्रत्येक महाहिमवान्, रुक्मी और वर्षधर पर्वत २०० योजन ऊंचा है तथा २०० कोस उद्धघ वाला है । जम्बूद्वीप में २०० कांचन पर्वत हैं।
भगवान् पद्मप्रभ की अवगाहना २५० धनुष की थी । असुरकुमारों के मुख्य प्रासाद २५० योजन ऊंचे हैं। '
सुमतिनाथ भगवान की अवगाहना ३०० धनुष की थी। अरिष्ठनेमि भगवान् ३०० वर्ष गृहस्थवास में रह कर दीक्षित हुए । वैमानिक देवों के विमानों का प्राकार ३०० योजन ऊँचा है। भगवान् महावीर के पास ३०० चौदह पूर्वधारी थे। पांच सौ धनुष अवगाहना वाले चरम शरीरी जीव की मोक्ष में कुछ अधिक ३०० धनुप अवगाहना रह जाती है। -
पार्श्वनाथ भगवान के पास ३५० चौदह पूर्वधारी थे। अमिनंदन भगवान् की, अवगाहना ३५० धनुष की थी।
संभवनाथ भगवान् की अवगाहना ४०० धनुष की थी। प्रत्येक निषध तथा नीलवान् पर्वत ४०० योजन ऊंचा और ४०० कोस उद्घध वाला है। आनत और प्राणत कन्पों में मिला कर ४०० विमान हैं । श्रमण भगवान् महावीर के पास ४०० वादी थे। ' अजितनाथ भगवान् और सगर चक्रवर्ती की अवगाहना ४५० धनुष की थी। सभी वक्षस्कार पर्वत सीता आदि नदियों के किनारे तथा मेरु पर्वत के समीप ५०० योजन ऊंचे तथा ५०० कोस उद्वेध वाले हैं। सभी वर्षधर पर्वत ५०० योजन ऊंचे तथा ५०० योजन