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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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नहीं। गृहस्थ के घर में प्रवेश करने की विधि।। (२)उ०-मुनियों को अशुद्ध आहार नहीं लेना चाहिए। (३)उ०-जीमनवार आदि में जाने से हानि । (४)उ०-मुनि को जीमनवार में नहीं जाना चाहिए। (१)उ०-मुनि को कैसा आहार लेना और कैसा नहीं लेना चाहिए। (६)उ०-ग्राह्य और अग्राह्य आहार के लिए नियम । (७)उ०-कैसा आहार कैसे लेना चाहिए और कैसा आहार कैसे छोड़ना चाहिए। . (८)उ०-पानी, फल, फूल तथा दूसरे प्रकार का आहार लेने
और न लेने के नियम । (8)उ०-कैसा आहार लेना और कैसा न लेना चाहिए। (१०)उ०----आहार पानी लाने के लिए मुनि को कैसे वर्तना चाहिए। (१)उ०-मिले हुए आहार की सात शिक्षाएं। सात पिंडेपणाएं (अभिग्रह विशेष) और सात पानपणाएं। ___ ग्यारहवाँ अध्ययन-शय्या । ठहरने के स्थान और पाटलादि के लिए नियम । इसमें तीन उद्देशे हैं(१)उ०-वसति अर्थात् ठहरने के स्थान के दोष । (२)उ०-गृहस्थ के साथ मुनि के रहने पर दोष तथा नव प्रकार की वसति। (३)उ०-मुनि को कैसे स्थान में रहना चाहिए और कैसे स्थान में नहीं। शय्या (पाट, पाटला,मकाने आदि) की चार प्रतिज्ञाएं।
बारहवाँ अध्ययन-ईयो । मुनि के लिए गमनागमन तथा । विहार करने के नियम । इसमें भी तीन उद्देशे हैं - (१) उ0--विहार के नियमामुनि को नौका पर का पैठना चाहिए