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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग अगीतार्थ तथा सूत्रार्थ में निश्चय रहित साधु को अकेले विचरने में बहुत दोष लगने की सम्भावना है। . . (५)उद्देश-मुनि को सदाचार से रहना चाहिए । उसके लिए जलाशय का दृष्टान्त । (६)उद्देश-उन्मार्ग में न जाना तथा रागद्वप का त्याग करना।
छठा अध्ययन-धूत । पापकर्मों को धोना। इसमें पाँच उद्देशे हैं(१)उद्देश-खजन सम्वन्धियों को छोड़ करधर्म में प्रवृत्त होना । (२) उद्देश-कर्मों को आत्मा से दूर करना। (३) उद्देश मुनि को अल्प उपकरण रखने चाहिएं और जहाँ तक हो सके कायाक्लेश आदि करता रहे। .। (४) उद्देश-मुनि को सुखों में मूञ्छित नहीं होना चाहिए। ()उद्देश-मुनि को संकटों से डरना नहीं चाहिए और प्रशंसा सुन कर प्रसन्न न होना चाहिए । उपदेश के योग्य आठ बातें।
सातवाँ अध्ययन महापरिज्ञा । नन्दीसूत्र की मलयगिरिटीका और नियुक्ति के अनुसार यह आठवाँ अध्ययन है । इसमें सात उद्देशे हैं। यह अध्ययन विच्छिन्न हो गया है, आजकल उपलब्ध नहीं है। • आठवॉअध्ययन-विमोद या विमोह । संसार के कारणों को यां मोह को छोड़ना मलयगिरि टीका के अनुसार यह अंध्ययन सातवाँ है। इसमें आठ उद्देशे हैं- " (१)उ०-कुशालपरित्याग । लोक धू व है या अधू व ? (२) उ०-अकल्पनीय वस्तुओं का परित्याग। । (३)उ०-मिथ्या शंका का निवारण । परिषहों से न डरना। (४)उ०-मुनियों को कारणविशेप से वैखानसादि (फाँसी आदि) वालमरण भी करना चाहिए। (५)उ०---चीमार पड़ने पर मुनि को भक्त परिक्षा से मरना चाहिए। (६)उ०-- वैर्यवाले मुनि को इंगितमरण (नियभूमि) करना