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श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला
इसका उत्तर यह है कि जैसे अमूर्त ज्ञानादि गुणों पर मूर्त मदिरादि का असर होता है उसी प्रकार अमूर्त जीव पर भी मृत कमे अपना कार्य करते हैं। आत्मा को अमते मानकर उक्त शंका का यह समाधान हुआ। आत्मा को कथंचित् मूत मानकर भी इसका समाधान किया जाता है । संसारो जीव अनादि काल से कर्म संतति से सम्बद्ध रहा है और वह कर्म के साथ क्षीर-नीर न्याय से एक रूप हो रहा है ! इसलिए वह सर्वथा अमूर्त नहीं है। कर्म सम्बद्ध होने से जीव कथंचित् मूर्त भी है। इसलिये उस पर मूर्त कर्म का अनुग्रह, उपपात
आदि होना युक्त ही है। | जड़ कर्म कैसे फल देता है- सभी प्राणी अच्छे या बुरे कमें करते हैं। पर बुरे कर्म का दुःख रूप फल कोई जीव नहीं चाहता । कर्मस्वयं जड़ हैं, वे चेतन से प्रेरणा पाये बिना फल नहीं दे सकते । इसीलिए कर्मवादी अन्य दार्शनिकों ने कर्म फल भोगाने वाला ईश्वर माना है। जैन दर्शन में तो ऐसा ईश्वर अभिमत नहीं है। इसलिये जैन दर्शन में कर्मफल भोग की व्यवस्था कैसे होगी? ___ माणी जो कर्म करते हैं उनका फल उन्हें उन्हीं कमों से मिल जाता है । कर्म जड़ हैं और प्राणी अपने किये हुए अशुभ कर्मों का फल भोगना नहीं चाहते यह ठीक है । पर यह ध्यान में रखना चाहिए कि जीव चेतन के संग से कर्मों में ऐसी शक्ति पैदा हो जाती है कि जिससे वे अपने शुभाशुभ विपाक को नियत समय पर स्वयं ही जीव पर प्रकट करते हैं । जैनदर्शन
यह नहीं मानता कि चेतन से सम्बद्ध हुए बिना ही जड़ कर्म Jफल देने में समर्थ हैं।
सभी जीव चेतन हैं । वे जैसा कर्म करते हैं उसके अनुसार
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