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करेगा। अस्तु ! हिन्दी संसार में एतद्विषयक संग्रह की आवश्यकता इसने पूरी की है । तारीख १५ । ६ ।१९४१ ।
सिंध (हैदराबाद)सनातन धर्मसभा के प्रेसीडेन्ट, न्याय संस्कृत के प्रखर विद्वान् तथा अंग्रेजी, जर्मन, लैटिन, फ्रेंच आदिबीस भाषाओं के ज्ञाता श्री सेठ किशनचन्द जी, प्रो० पुहुमल बदसे . 'श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह के दोनों भाग पढ़ कर मुझे अपार मानन्द हुमा। जैन दर्शन के पाठकों के लिए ये पुस्तकें अत्यन्त उपयोगी हैं। पुस्तक के संग्रह कर्ता दानवीर थी भैरोदानजी सेठिया तथा उनके परिवार का परिश्रम अत्यन्त सराहनीय है। इस रचना से सेठियाजी ने जैन साहित्य की काफी सेवा की है । श्रावण शुक्ला १५ संवत १९६८।
सेठ दामोदरदास जगजीवन, दाम नगर (काठियावाड़)
भापकी दोनों पुस्तकें मैं पाद्यन्त देख गया। आपने बहुत प्रशंसा पात्र काम उठाया है। ये ग्रन्थ ठाणांग समवायांग के माफिक खुलासा ( Reference) के लिए एक बड़ा साधन पाठक और पंडित देनों के लिए होगा।
___ बहुत दिन से मैं इच्छा कर रहा था कि पारिभाषिक शब्दों का एक कोष हो । अब मेरे को दीखता है कि उस कोष की जरूरत इस ग्रन्थ से पूर्ण होगी।
साथ साथ टीका में से जो अर्थ का अवतरण किया है उसमें पंडितों ने दोनों भाषाओं और भावों पर अच्छी प्रभुता होने का परिचय कराया है। ता० १७-६ ४१
श्री पूनमचन्दजी खींवसरासन्मानित प्रबन्धक श्री जैन वीराश्रम ब्यावर और आविष्कारक एल.पी.जैन संकेतलिपि (शार्ट हैण्ड),
बोल संग्रह नामक दोनों पुस्तकें देख कर अति प्रसन्नता हुई। शास्त्र के भिन्न भिन्न स्थलों में रहे हुए बोलों का संग्रह करके सर्व साधारण जनता तक जिन वचन रूप अमृत को पहुँचाने का जो प्रयत्न आपने किया है वह बहुत प्रशंसनीय है। हरेक आदमी शास्त्रों का पठन पाठन नहीं कर सकता लेकिन इन पुस्तकों के सहारे अवश्य लाम उठा सकता है।
बोर्डिंग व पाठशाला ग्रादि से विद्यार्थियों को योग्य बनाने के सिवाय सर्व साधारण जनता तक को जिन प्ररूपित तत्त्व ज्ञान रूप अमृत पिलाने का जो प्रयत्न आपने किया है यह भी जैन धर्म के प्रचार के लिए आपकी अपूर्व सेवा है। १८-१०-४१