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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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(१) क्रोध (२) लोभ (३) भय (४) हास्य (५) क्रीडा अर्थात् खेल (६) कुतूहल (७) राग और (८) द्वेष ।
(साधुप्रतिक्रमण महाव्रत २) ५८३.-साधु के लिए वर्जनीय आठ दोष
साधु को भाषासमिति का पालन करने के लिए नीचे लिखे आठ दोष छोड़ देने चाहिएं, क्योंकि इन दोषों के कारण ही सदोष वचन मुँह से निकलते हैं
(१) क्रोध (२) मान (३) माया (४) लोभ (५) हास्य (६) भय(७)निद्रा और (८)विकथा (अनुपयोगी वार्तालाप)।
( उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २४ गाथा ६ ) ५८४-शिक्षाशील के आठ गुण । ___ जो व्यक्ति उपदेश या शिक्षा ग्रहण करना चाहता है, उसमें नीचे लिखे आठ गुण होने चाहिए। (१) शान्ति- वह व्यक्ति हास्य क्रीड़ा न करे । हमेशा शान्त चित्त से उपदेश ग्रहण करे। (२) इन्द्रियदमन- जो मनुष्य इन्द्रियों के विषयों में गद्ध रहता है वह शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता। इसलिए शिक्षार्थी को इन्द्रियों का दमन करना चाहिए। (३) स्वदोषदृष्टि- वह व्यक्ति हमेशा अपने दोषों को दूर करने में प्रयत्न करे । दूसरे के दोषों की तरफ ध्यान न देकर गुण ही ग्रहण करे। (४) सदाचार- अच्छे चाल चलन वाला होना चाहिए। (५) ब्रह्मचर्य-वह व्यक्ति पूर्ण या मर्यादित ब्रह्मचर्य का पालन करे । अनाचार का सेवन न करे। (६) अनासक्ति-विषयों में अनासक्त होना चाहिए । इन्द्रिय लोलुप नहीं होना चाहिए।
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