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श्री सैठिया जैन ग्रन्थमाला
तो कहती- मां! पति मारने वाली को भीख दो। इस प्रकार बहुत समय बीत गया। श्रात्मनिन्दा से उसका पाप हल्का हो गया। एक दिन साध्वियों को नमस्कार करते समय सिर से पेटी गिर गई। उसने दीक्षा ले ली। इसी तरह अपने दुश्चरित्र की निन्दा करने से पापकर्म ढीले पड़ जाते हैं। (८)शुद्धि-तपस्या आदि से पाप कर्मों को धो डालनाशुद्धि है।
राजगृह नगर में श्रेणिक नाम का राजा था । उसने रेशमी वस्त्रों का एक जोड़ाधोने के लिये धोबी को दिया। उन्हीं दिनों कौमुदी महोत्सव आया। धोबी ने वह वस्त्र का जोड़ा अपनी दोनों स्त्रियों को पहनने के लिये दे दिया। चान्दनी रात में श्रेणिक और अभयकुमार वेश बदल कर घूम रहे थे। उन्होंने धोबी की स्त्रियों के पास वह वस्त्र देखा, देखकर उस पर पान के पीक का दाग लगा दिया। वे दोनों घर पर आई तो धोबी ने बहुत फटकारा। वस्त्रों को खार से धोया। सुबह राजा के पास कपड़े लाया। राजा के पूछने पर उसने सारी बात सरलता पूर्वक साफ साफ कह दी । यह द्रव्यशुद्धि हुई। _ साधु को भी काल का उल्लंघन बिना किए आचार्य के पास पापों की आलोचना कर लेनी चाहिए । यही भावशुद्धि है। अथवा जिस तरह अगदं अर्थात् दवाई से विष नष्ट हो जाता है। इसी तरह आत्मनिन्दा रूपी अगद से अतिचार रूपी विष
दूर करना चाहिए। (हरिभद्रीयावश्यक प्रतिक्रमणाध्ययन ) ५८०-प्रमाद आठ
जिसके कारण जीव मोक्षमार्ग के प्रति शिथिल प्रयत्नवाला हो जाय उसे प्रमाद कहते हैं। इसके आठ भेद हैं- . (१) अज्ञानप्रमाद- मूढता ।