________________ की जेन सिमान्त पोल संबाह पर शतमः कृतोपकारों दतं च सहस्रशो ममानो अहमपि ददामि किंचित्प्रत्युपकाराय तहानम् / " भावार्थ- इसने मेरा सैंकड़ों बार उपकार किया है। मुझे हजारों का दान दिया है / इसके उपकार का बदला चुकाने के लिए मैं भी कुछ देता हूँ। इस भावनासे दिये गये दान को कृतदान या प्रत्युपकार दान कहते हैं। (ठाणांग, सूत्र 745) ७६६-सुख दस सुरख दम प्रकार के कहे गये हैं। वे ये हैं(१) आरोग्य-शरीर का स्वस्थ रहना, उस में किसी प्रकार के रोग या पीड़ा का न होना आरोग्य कहलाता है। शरीर का नीरोग (खस्थ) रहना सब मुखों में श्रेष्ठ कहा गया है, क्योंकि जब शरीर नीरोग होगा तब ही आगे के नौ मुख प्राप्त किये जा सकते हैं।शरीर के आरोग्य बिनादीर्घ आयु, विपुल धन सम्पत्ति, तथा विपुल काम भोग आदि मुख रूप प्रतीत नहीं होते / सुख के साधन होने पर भी ये रोगी को दुःख रूप प्रतीत होते हैं। शरीर के आरोग्य बिना धर्म ध्यान होना तथा संयम सुख और मोक्ष सुख का प्राप्त होना तो असम्भव ही है। इसलिए शास्त्रकारों ने दस मुखों में शरीर की नीरोगता रूप मुख को प्रथम स्थान दिया है। व्यवहार में भी ऐसा कहा जाता है 'पहला सुख निरोगी काया'. अतः सब सुखों में 'आरोग्य' मुख प्रधान है। (2) दीर्घ आयु- दीर्य आयु के साथ यहाँ पर 'शुभ' यह विशेषण और समझना चाहिए। शुभ दीर्घ आयु ही सुखस्वरूप है। अशुभ दीर्घायु तो सुखरूप न होकर दुःख रूप ही होती है। सब मुखों की सामग्री प्राप्त हो किन्तु यदि दीर्घायु न हो तो उन