________________ 422 श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला wwwww चुका है। इन दस इन्द्रों के दस विमान होते हैं। वे इस प्रकार हैं(१)प्रथम सुधर्मदेवलोक के इन्द्र (शकेन्द्र) का पालक विमान है। (२)दूसरे ईशान देवलोक के इन्द्र(ईशानेन्द्र)का पुष्पक विमान है। (3) तीसरे सनत्कुमार देवलोक के इन्द्र का सौमनस विमान है। (4) चौथे माहेन्द्र देवलोक के इन्द्र का श्रीवत्स विमान है। (५)पाँचवें ब्रह्मलोक देवलोक के इन्द्र का नन्दिकावर्त विमान है। (६)छठेलान्तक देवलोक के इन्द्र का कामकम नामक विमान है। (7) सातवें शुक्रदेवलोक के इन्द्र का प्रीतिगम नामक विमान है। (८)आठवें सहस्रार देवलोक के इन्द्र का मनोरम विमान है। (8) नवें प्राणत और दसवें प्राणत देवलोक का एक ही इन्द्र है और उस का विमलवर नामक विमान है / (10) ग्यारहवें पारण और बारहवें अच्युत देवलोक का एक ही इन्द्र है। उसका सर्वतोभद्र नामक विमान है। इन विमानों में दस इन्द्र रहते हैं। ये विमान नगर के आकार वाले होते हैं / ये शाश्वत नहीं हैं। ( ठाणांग, सूत्र 766 ) 745- तृण वनस्पतिकाय के दस भेद तृण के समान जो वनस्पति हो उसे तृण वनस्पति कहते हैं। बादर की अपेक्षा से वनस्पति की तृण के साथ साधर्म्यता (समानता) बतलाई गई है। बादर की अपेक्षा से ही इसके दस भेद होते हैं सूक्ष्म की अपेक्षा से नहीं / तृण वनस्पति के दस भेद ये हैं(१) मूल- जटा यानि जड़ / (2) कन्द- स्कन्ध के नीचे का भाग। (3) स्कन्ध- थड़ को स्कन्ध कहते हैं / (4) त्वक्- वल्कल यानि छाल।। (5) शाला- शाखा को शाला कहते हैं। (6) प्रवाल- अङ्कर / (7) पत्र- पत्ते /