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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
६६१ - स्वाध्याय (दारिक) दस
औदारिक शरीर सम्बन्धी दस अस्वाध्याय हैं । यथा(१) अस्थि (२) मांस (३) शोणित (४) अशुचि सामन्त ( ५ ) श्मशानसामन्त (६) चन्द्रोपराग ( ७ ) सूर्योपराग ( ८ ) पतन (६) राजविग्रह (१०) मृत औदारिक शरीर ।
(१) अस्थि (हड्डी) (२) मांस (३) शोणित ( रुधिर)- ये तीनों चीजें मनुष्य और तिर्यञ्च के औदारिक शरीर में पाई जाती हैं। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च की अपेक्षा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से इस प्रकार अस्वाध्याय माना गया है।
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द्रव्य से - तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय के अस्थि, मांस और रुधिर स्वाध्याय के कारण हैं। किसी किसी ग्रन्थ में 'चर्म' भी लिखा है।
क्षेत्र से - साठ हाथ की दूरी तक अस्वाध्याय के कारण हैं। काल से - उपरोक्त तीनों में से किसी के होने पर तीन पहर तक अस्वाध्याय काल माना गया है किन्तु बिलाव (मार्जार) आदि के द्वारा चूहे आदि के मार देने पर एक दिन रात तक स्वाध्याय माना गया है।
भाव से - नन्दी आदि कोई सूत्र अस्वाध्याय काल में नहीं पढ़ना चाहिए।
मनुष्य सम्बन्धी अस्थि आदि के होने पर भी इसी तरह समझना चाहिए केवल इतनी विशेषता है कि क्षेत्र की अपेक्षा से एक सौ हाथ की दूरी तक ।
काल की अपेक्षा - एक अहोरात्र अर्थात् एक दिन और रात और समीप में स्त्री के रजस्वला होने पर तीन दिन का अस्वाध्याय होता है। लड़की पैदा होने पर आठ दिन और लड़का पैदा होने पर सात दिन तक अस्वाध्याय रहता है। हड्डियों की अपेक्षा से ऐसा जानना चाहिए की जीव द्वारा शरीर को छोड़ दिया