________________
३२८
श्री सेठियाजैन प्रन्धमावा
___ एक बार अर्द्धरात्रि के समय कुटुम्ब जागरणा करती हुई रेवती गाथापत्नी को ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि इन बारह सौतों के होने से मैं महाशतक गाथापति के साथ मनमाने काम भोग नहीं भोग सकती हूँ। अतः यही अच्छा है कि शस्त्र, अग्नि या विष का प्रयोग करके सौतों को मार दिया जाय जिससे इनका सारा धन भी मेरे हाथ लग जायगा और फिर मैं अपनी इच्छानुसार महाशतक गाथापति के साथ कामभोग भी भोग सकँगी ऐसा सोच कर वह कोई अवसर ढूंढने लगी । मौका पाकर उसने छः सोतों को विष देकर और छः को शस्त्र द्वारा मार डाला। उनके धन को अपने अधिकार में करके महाशतक गाथापति के साथ यथेच्छ काम भोग भोगने लगी। मांस में लोलुप, मूछित एवं गृद्ध बनी हुई रेवती अनेक तरीकों से तने हुए और मुंजे हुए मांस के सोले आदि बना कर खाने लगी और यथेच्छ शराब पीने लगी।
एक समय राजगृह नगर में अमारी (हिंसाबंदी) की घोषणा हुई । तब मांस लोलुपा रेवती ने अपने पीहर के नौकरों को बुलाकर कहा कि तुम प्रति दिन मेरे पीहर वाले गोकुल में से दो गाय के बछड़ों को मार कर मेरे लिए यहाँ ले आया करो। रेवती की आज्ञानुसार नौकर लोग दो बछड़ों को मार कर प्रति दिन लाने लगे। इस प्रकार प्रचुर मांस मदिरा का सेवन करती हुई रेवती समय बिताने लगी। ___ श्रावक के व्रत नियमों का भली प्रकार पालन करते हुए महाशतक के चौदह वर्ष बीत गए। तत्पश्चात् वह आनन्दश्रावक की तरह ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सम्भला कर पौषधशाला में आकर धर्मध्यान पूर्वक समय बिताने लगा। उसी समय मांस लोलुपा रेवती मद्य मांस की उन्मत्तता और कामुकता के