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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
भावार्थ- जिसने हाथ की अगुली सहित तीन रेखाओं के समान तीनों काल सम्बन्धी तीनों लोक और अलोक को साक्षात् देख लिया है तथा जिसे राग द्वेष भय, रोग, जरा, मरण, तृष्णा, लालच आदिजीत नहीं सकते, उस महादेव ( देवाधिदेव ) को मैं नमस्कार करता हूँ ॥१॥
जिसज्योतिसे गौतम और शङ्कर आदि उत्तम पुरुषों ने परम ऐश्वर्य प्राप्त किया तथा प्रथम तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव स्वामी श्रादि जिनेश्वरों ने सर्वश्रेष्ठ सिद्ध पद प्राप्त किया और जिस ज्योति में समस्त विश्व दर्पण में शरीर के प्रतिबिम्ब की तरह स्पष्ट झलकता है उस ज्योति को में मन वचन और काया से अपनी इष्ट सिद्धि के लिये नमस्कार करता हूँ॥२॥
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