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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
की राव की मर्यादा की थी। (१४) भक्खविहि- खाने के लिए पक्वान की मर्यादा करना। ..आनन्द श्रावक ने घृतपूर (घेवर) और खांड से लिप्त खाजे का
परिमाण किया था। (१५) ओदणविहि- क्षुधा निवृत्ति के लिए चावल आदि की मर्यादा करना । आनन्द श्रावक ने कमोद चावल का परिमाण किया था । (१६) मूवविहि- दाल को परिमाण करना। आनन्द श्रावक ने मटर, मूंग और उड़द की दाल का परिमाण किया था। . (१७) घय विहि-घृत का परिमाण करना। भानन्द श्रावक ने गायों के शरद ऋतु में उत्पन्न घी का नियम किया था। (१८) सागविहि-शाक भाजी का परिमाण निश्चित करना। आनन्द श्रावक ने वधुश्रा, चूचू (सुत्थिय) और मण्डुकी शाक का परिमाण किया था। चूचू और मण्डुकी उस समय में प्रसिद्ध कोई शाक विशेष हैं। (१६) माहुरयविहि- पके हुए फलों का परिमाण करना ।
आनन्द श्रावक ने पालङ्ग (बेल फल) फल का परिमाण किया था। (२०) जेमणविहि-बड़ा, पकौड़ी आदि खाने योग्य पदार्थों का परिमाण निश्चित करना । प्रानन्द श्रावक ने तेल आदि में तलने के बाद छाछ, दही और कांजी आदि खट्टी चीजों में भिगोये हुएमग भादि की दाल से बने हुए बड़े और पकौड़ी आदि का परिमाण किया था। आज कल इसी को दही बड़ा, कांजी बड़ा
और दालिया आदि कहते हैं। (२१) पाणियविहि-पीने के लिए पानी की मर्यादा करना। आनन्द श्रावक ने आकाश से गिरे हुए और तत्काल (टांकी आदि में) ग्रहण किए हुए जल की मर्यादा की थी।