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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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परिग्रह रखने का नियम लिया। रात्रिभोजन का त्याग किया। ___ सातवें व्रत में उपभोग परिभोग की मर्यादा की जाती है। एक ही बार भोग करने योग्य भोजन, पानी आदि पदार्थ उपभोग कहलाते हैं। बारवार भोगे जाने वाले वस्त्र, आभूषण और स्त्री आदि पदार्थ परिभोग कहलाते हैं। इन दोनों का परिमाण नियत करना उपभोग परिभोग व्रत कहलाता है। यह व्रत दो प्रकार का है एक भोजन से और दूसरा कर्म से। ___उपभोग करने योग्य भोजन और पानी आदि पदार्थों का तथा परिभोग करने योग्य पदार्थों का परिमाण निश्चित करना अर्थात् अमुक अमुक वस्तु को ही मैं अपने उपभोग परिभोग में लूँगा, इन से भिन्न पदार्थों को नहीं, ऐसी संख्या नियत करना भोजन से उपभोग परिभोग व्रत है। उपरोक्त पदार्थों की प्राप्ति के लिए उद्योग धन्धों का परिमाण करना अर्थात् अमुक अमुक उद्योग धन्धों से ही मैं इन वस्तुओं का उपार्जन करूँगा दूसरे कार्यों से नहीं, यह कर्म से उपभोग परिभोग व्रत कहलाता है।
आनन्द श्रावक ने निम्न प्रकार से मर्यादा की(१) उल्लणियाविहि- स्नान करने के पश्चात् शरीर को पोछने के लिए गमछा (टुवाल) आदि की मर्यादा करना।आनन्द श्रावक ने गन्धकाषायित (गन्ध प्रधान लाल वस्त्र) का नियम किया था। (२) दन्तवणविहि-दाँत साफ करने के लिए दाँतुन का परिमाण करना। आनन्द श्रावक ने हरी मुलहटी का नियम किया था। (३) फलविहि- स्नान करने के पहले शिर धोने के लिए
आंवला आदि फलों की मर्यादा करना । आनन्द श्रावक ने जिस में गुठली उत्पन्न न हुई हो ऐसे आंवलों का नियम किया था। (४) अभंगणविहि-शरीर पर मालिश करने योग्य तेल आदि का परिमाण निश्चित करना । आनन्द श्रावक ने शतपाक (सौ