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श्री सेठिया जैन अन्यमाला
घर जाय या राजा के अन्तःपुर में भी चला जाय फिर मी किसी को किसी प्रकार की शंका व अप्रतीति उत्पन्न नहीं होती। (६) श्रावक शीलवत, गुणवत, विरमण प्रत्याख्यान आदिका सम्यक् पालन करता हुआ अष्टमी,चतुर्दशी, अमावस्या व पूर्णिमा कोपौषधोपवास कर सम्यक् प्रकार से धर्म की आराधना करता है। (१०) श्रावक श्रमण निर्ग्रन्थों को निर्दोष, मासुकतथा एषणीय
आहार, पानी, खादिम, स्वादिम, वस्त्र, पात्र, रजोहरण, पीठ, ... फलक (पाटिया), शय्या, संस्तारक, औषध, भेषज चौदह प्रकार का दान देता हुआ और अपनी आत्मा को धर्म ध्यान में प्रवृत्त करता हुआ रहता है। (भगवती शतक २ उद्देशा ५) ६८५- श्रावक दस
सम्यक्त्व सहित अणुव्रतों को धारण करने वाला प्रति दिन पश्च महाव्रतधारी साधुओं के पास शास्त्र श्रवण करने वाला श्रावक कहलाता है । अथवा
श्रद्धालुतां श्राति शृणोति शासनं ।
दानं वपेदाशु घृणोति दर्शनम् ॥ . कृन्तत्यपुण्यानि करोति संयम ।
तं श्रावकं प्राहुरमी विचक्षणाः ॥ अर्थात्- वीतराग प्ररूपित तत्त्वों पर दृढ श्रद्धा रखने वाला, जिनवाणी को सुनने वाला, पुण्य मार्ग में द्रव्य का व्यय करने वाला, सम्यग्दर्शन को धारण करने वाला, पापको छेदन करने वाला देशविरति श्रावक कहलाता है। भगवान् महावीर स्वामी के मुख्य श्रावक दस हुए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-...
(१) आनन्द (२) कामदेव (३)चुलनीपिता (४)मुरादेव (५) चुल्लशतक (६) कुण्डकोलिक (७) सद्दालपुत्त (सकडालपुत्र)