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________________ २८४ श्री सेठिया जैन पन्धमाला देख सकता। भगवान् के ऐसा फरमाने पर भी कपिल वासुदेव कुतूहल से शीघ्रता पूर्वक लवण समुद्र के तट पर आया किन्तु उसके पहुँचने के पहले ही कृष्ण वासुदेव वहाँ से रवाना हो चुके थे। लवण समुद्र में जाते हुए कृष्ण वासुदेव के रथ की ध्वजा को देख कर कपिल वासुदेव ने शंखध्वनि की। उस ध्वनि को सुन कर कृष्ण वासुदेव ने भी शंखध्वनि की। फिर लवण समुद्र को पार कर द्रौपदी तथा पाँचों पाण्डवों सहित निजस्थान को गये। (६) चन्द्रसूर्य्यावतरण-- एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी कौशाम्बी नगरी में विराजते थे । वहाँ समवसरण में चन्द्र और सूर्य दोनों देव अपने अपने शाश्वत विमान में बैठ कर एक साथ भगवान् के दर्शन करने के लिए आये। ___ चन्द्र और सूर्य उत्तरविक्रिया द्वारा बनाये हुए विमान में बैठ कर ही तीर्थरादि के दर्शन करने के लिये आया करते हैं, परन्तु भगवान महावीर स्वामी के समवसरण में वेदोनों एक साथ और अपने अपने शाश्वत विमान में बैठ कर आये। यह भी अनन्त काल में अभूतपूर्व घटना है। अतः अच्छेरामाना जाता है। (७) हरिवंश कुलोत्पत्ति- हरिनाम के युगलिए का वंश यानी पुत्रपौत्रादि रूप से परम्परा का चलना हरिवंश कुलोत्पत्ति कहलाती है । इसका विवेचन इस प्रकार है जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कौशाम्बी नगरी के अन्दर सुमुख नाम काराजाराज्य करता था। एक समय उस राजाने वीरक नाम के एक जुलाहे की रूप लावण्य में अद्वितीय वनमाला नाम की स्त्री को देखा और अति सुन्दरी होने के कारण वह उसमें आसक्त हो गया, किन्तु उसकी प्राप्ति न होने से वह राजा खिन्न चित्त एवं उदास रहने लगा। एक समय सुमति नाम के मन्त्री ने राजा से इसका कारण पूछा। राजा ने अपने मनोगत भावों को उससे
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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