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भी जैन सिद्धान्त बोल संपह
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और प्रभा का प्रदान कर हेयोपादेय पदार्थों में तिरस्कार स्वीकार ' (अग्रहण और ग्रहण) रूप प्रवृत्ति कराने में कारण होने से अहिंसा दीपक के समान है तथा आपत्तियों से प्राणियों की रक्षा करने वाली होने से हिंसा त्राण तथा शरणरूप है और कल्याणाथियों के द्वारा आश्रित होने से गति, सब गुणों का आधार एवं सब सुखों का स्थान होने से प्रतिष्ठा आदि नामों से कही जाती है । इस अहिंसा भगवती (दया माता) के ६० नाम कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं(१) निव्वाण (निर्वाण)- मोक्ष का कारण होने से अहिंसा निर्वाण कही जाती है। (२) निव्वुई (निवृत्ति)-मन की स्वस्थता(निश्चिन्तता) एवं दुःख की निवृत्ति रूप होने से अहिंसा को नित्ति कहा जाता है। (३) समाही (समाधि)- चित्त की एकाग्रता । (४) सत्ती (शक्ति)- मोक्ष गमन की शक्ति देने वाली अथवा शान्ति देने वाली। (५) कित्ती (कीर्ति)-- यश कीर्ति की देने वाली । (६) कंती (कान्ति)- तेज, प्रताप एवं सौन्दर्य और शोभा को देने वाली। (७) रति- श्रानन्द दायिनी होने से अहिंसा रति कहलाती है। (8) सुयङ्ग (श्रुताङ्ग)-श्रुत अथोत् ज्ञान ही जिसका अङ्ग हे ऐसी। (E) विरति- पाप से निवृत्त कराने वाली। (१०) तित्ती (तृप्ति)- तृप्ति अर्थात् सन्तोष देने वाली। (११) दया-- सब प्राणियों की रक्षा रूप होने से अहिंसा दया अर्थात् अनुकम्पा है। शास्त्रकारों ने दया की बहुत महिमा बतलाई है और कहा है-'सव्वजग्गजीवरक्षण दयट्टयाए पाययणं भगवया सुकहियं ।'