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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
पाँच से गुणा किया तो २५ हुए। फिर पाँच से गुणा करने पर १२५ | फिर गुणा करने पर ६२५ । अन्तिम दफा गुणा करने पर ३१२५ ।
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(घ) जघन्य युक्तासंख्येयक- उत्कृष्ट परीता संख्येयक से एक अधिक को जघन्य युक्तासंख्येयक कहते हैं ।
(ङ) मध्यम युक्ता संख्येयक- जघन्य और उत्कृष्ट के बीच की संख्या को मध्यम युक्तासंख्येयक कहते हैं ।
(च) उत्कृष्ट युक्ता संख्येयक- जघन्य युक्तासंख्येयक को उसी संख्या से गुणा करने पर जो संख्या प्राप्त हो उससे एक न्यून . संख्या को उत्कृष्ट युक्तासंख्येयक कहते हैं ।
(छ) जघन्या संख्येया संख्येयक- उत्कृष्ट युक्तासंख्येयक में एक और मिला देने पर जघन्या संख्येया संख्येयक हो जाता है । (ज) मध्यमासंख्येयासंख्येयक- जघन्य और उत्कृष्ट के बीच की संख्या को मध्यमासंख्येया संख्येयक कहते हैं । (झ) उत्कृष्टा संख्येया संख्येयक - उत्कृष्ट परीता संख्येयक की तरह यहाँ भी जघन्यासंख्येयासंख्येयक की उतनी ही राशियाँ स्थापित करे । फिर उनमें से प्रत्येक के साथ गुणा करते हुए बढ़ाता जाय । अन्त में जो संख्या प्राप्त हो उनसे एक कम तक को उत्कृष्टासंख्येया संख्येयक कहते हैं ।
fair चार्य का मत है कि जघन्यासंख्येया संख्येयक को उसी से गुणा करना चाहिए। जो राशि प्राप्त हो उसे फिर उतनी से गुणा करे । जो राशि प्राप्त हो उसे फिर गुणन करे । इस तरह तीन वर्ग करके उसमें दस असंख्येयक राशि मिला दे । वे निम्नलिखित हैं- (१) लोकाकाश के प्रदेश (२) धर्म द्रव्य के प्रदेश (३) अधर्म द्रव्य के प्रदेश (४) एक जीव द्रव्य के प्रदेश (५) द्रव्यार्थिक निगोद अर्थात् सूक्ष्म साधारण वनस्पति