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श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह १३५ वर्गणा कहते हैं। इसके लिए विशेषावश्यक भाष्य में कुचिकर्ण का दृष्टान्त दिया गया है
भरतक्षेत्र के मगध देश में कुचिकर्ण नाम का गृहपति रहता था। उसके पास बहुत गौएं थीं। उन्हें चराने के लिए बहुत से खाले रक्खे हुए थे । हजार से लेकर दस हजार गौओं तक के टोले बनाकर उसने ग्वालों को सौंप दिया। गौएं चरते चरते जब आपस में मिल जाती तो ग्वाले झगड़ने लगते । वे अपनी गौओं को पहिचान न सकते । इस कलह को दूर करने के लिए सफेद, काली, लाल, कबरी आदि अलग अलग रंग की गौओं के अलग अलग टोले बनाकर उसने ग्वालों को सौंप दिया। इसके बाद उनमें कभी झगड़ा नहीं हुआ।
इसी प्रकार सजातीय पुद्गल परमाणुओं के समुदाय की भी व्यवस्था है। गौओं के स्वामी कुचिकर्ण के तुल्य तीर्थकर भगवान् ने ग्वाल रूप अपने शिष्यों को गायों के समूह रूप पुद्गल परमाणुओं का स्वरूप अच्छी तरह समझाने के लिए वर्गणाओं के रूप में विभाग कर दिया। वे वर्गणाएं आठ हैं..... (१) औदारिक वर्गणा- जो पुद्गल परमाणु औदारिक शरीर रूप में परिणत होते हैं, उनके समूह को औदारिकवर्गणा कहते हैं। (२) वैक्रिय वर्गणा-- वैक्रिय शरीर रूप में परिणत होने वाले पुद्गल परमाणुओं का समूह । (३) आहारक वर्गणा- आहारक शरीर रूप में परिणत होने वाले परमाणु पुद्गलों का समूह । (४) तैजस वर्गणा-तैजस शरीर रूप में परिणत होने वाले परमाणुओं का समूह । (५) भाषा वर्गणा- भाषा अर्थात् शब्द के रूप में परिणत होने वाले पुद्गलपरमाणुओं का समूह ।