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जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
में दूसरा भेद रहता है या नहीं ? इसका उत्तर निम्न प्रकार हैजिस जीव के द्रव्यात्मा होती है उसके कषायात्मा होती भी है और नहीं भी होती। सकषायी द्रव्यात्मा के कषायात्मा होती है
कषायी द्रव्यात्मा के कषायात्मा नहीं होती, किन्तु जिस जीव के पायात्मा होती है उसके द्रव्यात्मा नियम रूप से होती है । द्रव्यात्मत्व अर्थात् जीवत्व के बिना कषायों का सम्भव नहीं है ।
जिस जीव के द्रव्यात्मा होती है, उसके योगात्मा होती भी है। और नहीं भी होती। जो द्रव्यात्मा सयोगी है उसके योगात्मा होती है और जो अयोगी है उसके योगात्मा नहीं होती, किन्तु जिस जीव के योगात्मा होती है उसके द्रव्यात्मा नियमपूर्वक होती है। द्रव्यात्मा जीव रूप है और जीव के बिना योगों का सम्भव नहीं है।
जिस जीव के द्रव्यात्मा होती है उसके उपयोगात्मा नियम से होती है एवं जिसके उपयोगात्मा होती है उसके द्रव्यात्मा नियम से होती है । द्रव्यात्मा और उपयोगात्मा का परस्पर नित्य सम्बन्ध है । सिद्ध और संसारी सभी जीवों के द्रव्यात्मा भी है और उपयोगात्मा भी है । द्रव्यात्मा जीव रूप है और उपयोग उसका लक्षण है। इसलिये दोनों एक दूसरी में नियम रूप से पाई जाती हैं।
जिसके द्रव्यात्मा होती है उसके ज्ञानात्मा की भजना है I क्योंकि सम्यग्दृष्टि द्रव्यात्मा के ज्ञानात्मा होती है और मिथ्यादृष्टि द्रव्यात्मा के ज्ञानात्मा नहीं होती । किन्तु जिसके ज्ञानात्मा है उसके द्रव्यात्मा नियम से है । द्रव्यात्मा के बिना ज्ञान की सम्भावना ही नहीं है ।
जिसके द्रव्यात्मा होती है उसके दर्शनात्मा नियम पूर्वक होती है और जिसके दर्शनात्मा होती है उसके भी द्रव्यात्मा नियम पूर्वक होती है । द्रव्यात्मा और उपयोगात्मा की तरह द्रव्यात्मा और दर्शनात्मा में भी नित्य सम्बन्ध है ।
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