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मो जैनसिद्धान्त षोल संग्रह
पहुँचे हुए आत्मा को भी शान्त हुए कर्म पुनः किस प्रकार दवा लेते हैं ? इत्यादि कर्म विषयक सभी प्रश्नों का सन्तोषप्रद उत्तर जैन सिद्धान्त देता है। यही उसकी एक बड़ी विशेषता है।
कर्मवाद बताता है कि आत्मा को जन्म-मरण के चक्र में घुमाने वाला कर्म ही है। यह कर्म हमारे ही अतीत कार्यों का अवश्यम्भावी परिणाम है। जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का यही एक प्रधान कारण है । हमारी वर्तमान अवस्था किसी बाह्य शक्ति से प्रदान की हुई नहीं है। यह पूर्व जन्म या वर्तमान जन्म में किये हुए हमारे कर्मों का ही फल है । जो कुछ भी होता है वह किसी अन्तरंग कारण या अवस्था का परिणाम है। मनुष्य जो कुछ पाता है वह उसी की बोई हुई खेती का फल है ।
कर्मवाद अध्यात्म शास्त्र के विशाल भवन की आधार शिला है । आत्मा की समानता और महानता का सन्देश इसके साथ है । यह बताता है कि आत्मा किसी रहस्यपूर्ण शक्तिशाली व्यक्ति की शक्ति और इच्छा के अधीन नहीं है और अपने संकल्प और अभिलाषाओं की पूर्ति के लिए हमें उसका दरवाजा खटखटाने की आवश्यकता नहीं है। अपने पापों का नाश करने के लिये, अपने उत्थान के लिये हमें किसी शक्ति के आगे न दया की भीख मांगने की आवश्यकता है न उसके आगे रोने और गिड़गिड़ाने की ही । कर्मवाद का यह भी मन्तव्य है कि संसार की सभी आत्माएं एक सी हैं और सभी में एक सी शक्तियाँ हैं। चेतन जगत में जो भेदभाव दिखाई देता है वह शक्तियों के न्यूनाधिक विकास के कारण। कर्मवाद के अनुसार विकास की चरम सीमा को प्राप्त व्यक्ति परमात्मा है। हमारी शक्तियाँ कर्मों से आहत हैं, अविकसित हैं और आत्मबल द्वारा कर्म के आवरण को दूर कर इन शक्तियों का विकास