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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(२) विनय-सब के साथ नम्रता से व्यवहार करना। (३) गुरुपूजा-अपने से बड़े अर्थात् स्थविर साधुओं की भक्ति करना। (४) शैक्षबहुमान-शिक्षा ग्रहण करने वाले और नवदीक्षित साधुओं का सत्कार करना। (५) दानपतिश्रद्धावृद्धि-दान देने में दाता की श्रद्धा बढ़ाना। (६) बुद्भिवलवर्द्धन-अपने शिष्यों की बुद्धि तथा अध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाना।
( ठाणांग ६ सूत्र ५७०) ४५२-श्रावक के छः गुण
देशविरति चारित्र को पालन करने वाला श्रद्धासम्पन्न व्यक्ति श्रावक कहलाता है। इस के छः गुण हैं(१) श्रावक व्रतों का भली प्रकार अनुष्ठान करता है। व्रतों का अनुष्ठान चार प्रकार से होता है(क) विनय और बहुमानपूर्वक व्रतों को सुनना । (ख) व्रतों के भांगे, भेद और अतिचारों को सांगोपांग यथार्थ
रूप से जानना। (ग) गुरु के समीप कुछ काल अथवा सदा के लिए व्रतों को
अंगीकार करना। (घ) ग्रहण किये हुए व्रतों को सम्यक् प्रकार पालना । (२) श्रावक शीलवान् होता है। शील(आचार)छः प्रकार का है। (क) जहाँ बहुत से शीलवान् बहुश्रुत साधर्मिक लोग एकत्र हों उस स्थान को आयतन कहते हैं, वहाँ आना जाना रखना। (ख) बिना कार्य दूसरे के घर में न जाना। (ग) चमकीला भड़कीला वेष न रखते हुए सादे वस्त्र पहनना ।