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. श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह अनन्त सम्बन्ध है, परन्तु जो संसारी जीव कर्म सहित हैं उनके साथ लोकाकाश का सादि सान्त सम्बन्ध है। सिद्ध जीव और सिद्धक्षेत्र के लोकाकाश प्रदेश का सम्बन्ध सादि अनन्त है। पुद्गलद्रव्य का आकाश से अनादि अनन्त सम्बन्ध है,परन्तु आकाश प्रदेश और पुद्गल परमाणुओं का परस्पर सम्बन्ध सादि सान्त है । लोकाकाश की तरह धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय का भी अन्य द्रव्यों के साथ पारस्परिक सम्बन्ध जान लेना चाहिए। जीव और पुद्गल के सम्बन्ध में अभव्य जीव से पुद्गल का सम्बन्ध अनादि अनन्त है । क्योंकि अभव्य के कर्मरूपी पुद्गल कभी भी छूटने वाले नहीं हैं । भव्य जीव से पुद्गल का सम्बन्ध अनादि सान्त है। क्योंकि भव्य जीव यथावत् क्रिया करके कर्मों को छोड़ने वाला होता है। उसके मोक्ष चले जाने पर कर्मरूप पुद्गल का सम्बन्ध छूट जाता है।
द्रव्यों का परिणाम निश्चय नय की अपेक्षा छहों द्रव्य स्वभाव परिणाम से परिणत होते हैं। इस लिए स्वपरिणामी हैं। वह परिणामिपना शाश्वत् अर्थात् अनादि अनन्त है,परन्तु जीव
और पुद्गल आपस में मिलकर सम्बन्ध को प्राप्त होते हैं। इससे परपरिणामी हैं। यहां पर भी अभव्य जीव का परिणामिपना अनादि अनन्त और भव्य जीव का वह अनादि सान्त है। पुद्गल में परिणामिपना सत्ता की अपेक्षा अनादि अनन्त और आपस के संयोगवियोग की अपेक्षा सादि सान्त है। जीव द्रव्य भी जब तक पुद्गल के साथ मिला रहता है तब तक सक्रिय है । अलग होने पर अर्थात्