________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 427 होते हैं। पर्यायार्थिक नय के 6 भेदों से 5 को गुणा करने पर इसके 30 भेद होते हैं / द्रव्यार्थिक के 70 और पर्यायार्थिक के 30 भेद मिलकर 100 भेद होते हैं। नयों के सात सौ भेद नीचे लिखे अनुसार भी किए जाते हैं नैगम नय के मूल तीन भेद हैं- अतीत नैगम नय, अनागत नेगम नय, वर्तमान नैगम नय / इन तीनों को नित्य द्रव्यार्थिक आदि दस से गुणित करने पर तीस भेद हो जाते हैं / तीस भेदों को सप्तभङ्गी के सात भङ्गों से गुणित करने पर 210 भेद हो जाते हैं। संग्रह नय के दो भेद हैं-- सामान्य संग्रह और विशेष संग्रह। प्रत्येक के७०-७० (नित्यद्रव्यार्थिक रूप दस को सप्तभङ्गी से गुणित करने पर) भेद होते हैं। इसके कुल 140 भेद हुए / व्यवहार के दो भेद-सामान्यसंग्रहभेदक व्यवहार और विशेषसंग्रहभेदक व्यवहार, प्रत्येक के उपरोक्त रीति से 70 - 70 भेद हैं। पर्यायार्थिक नय के समञ्चय रूप से द्रव्य व्यञ्जन.गुण आदि 6 भेद हैं। प्रत्येक के साथ सप्तभङ्गी जोड़ी जाती है। अतः शब्द समभिरूढ और एवंभूत के 42-42 भेद हो जाते हैं / ऋजुसूत्र नय के मूल में सूक्ष्म और स्थूल दो भेद हो जाने से 84 भेद हो जाते हैं / इस प्रकार कुल मिलाकर नीचे लिखे अनुसार भेद हो जाते हैं-- नैगम के 210 संग्रह के 140 व्यवहार के 140 ऋजुसूत्र के 84 शब्द के 42 समभिरूढ के 42 एवंभूत के 42 / कुल 700 / ___सातों नयों का स्वरूप समझाने के लिये शास्त्रकारों ने प्रस्थक, वसति और प्रदेश ये तीन दृष्टान्त दिये हैं। उन्हें क्रमशः यहाँदेते हैं। प्रस्थक का दृष्टान्त-प्रस्थक काष्ठ का बना हुआ धान्य का माप विशेष है। प्राचीन काल में मगध देश में यह माप काम में लाया जाता था।प्रस्थक (पायली)करने के उद्देश्य से हाथ में कुल्हाड़ी ले कर जंगल की ओर जाते हुए पुरुष को देखकर किसी ने उससे पूछा