________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 423 (5) कर्मोपाधिनिरपेक्षस्वभाव नित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नयजो संसारी जीव की पर्याय को कर्म की उपाधि रहित देखे / जैसे संसारी जीवों की पर्याय मुक्त (शुद्ध) है। (6) कर्म की उपाधि सहित संसारी जीवों को ग्रहण करने वाला कर्मोपाधि सापेक्ष अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय है। जैसे संसारी जीव की मृत्यु होती है, जन्म लेता है। द्रव्यार्थिक के दस भेद जहाँ दार्शनिक रीति से आत्मा का विवेचन किया जाता है, ऐसे अध्यात्म प्रकरणों के लिए द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक का विवेचन दूसरे दंग का होता है / इस दृष्टि से द्रव्यार्थिक के दस भेद हैं(१) कर्म आदि की उपाधि से अलग शुद्ध आत्मा को विषय करने वाला कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक है। जैसे संसारी आत्मा मुक्तात्मा के समान शुद्ध है। (2) उत्पाद व्यय को छोड़ कर सत्ता मात्र को विषय करने वाला सत्ताग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है। जैसे जीव नित्य है। (3) भेद विकल्पों की अपेक्षा न करके अभेद मात्र को विषय करने वाला भेद विकल्प शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है / जैसे- गुणपर्याय से द्रव्य भिन्न है। (4) कर्मों की उपाधि सहित द्रव्य को ग्रहण करने वाला कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक है। जैसे क्रोध आत्मा का स्वभाव है। (5) द्रव्य को उत्पाद व्यय सहित ग्रहण करने वाला उत्पाद व्यय सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक है। जैसे द्रव्य प्रति समय उत्पाद व्यय ध्रौव्य सहित है। (6) भेद की अपेक्षा रखने वाला भेद कल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है / जैसे- ज्ञान दर्शन आदि जीव के गुण हैं।