________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 421 द्रव्याथिक के तीन और पर्यायार्थिक के चार भेद मानते हैं। द्रव्यार्थिक नय के 10 भेद इस प्रकार हैं(१) नित्यद्रव्यार्थिक- जो सबद्रव्यों को नित्यरूप से स्वीकार करता है। (2) एकद्रव्यार्थिक- जो अगुरुलघु और क्षेत्र की अपेक्षा न करके एक मूल गुण को ही इकट्ठा ग्रहण करे। (3) सद्व्यार्थिक-जो 'ज्ञानादि गुण से सब जीव समान हैं। इससे सब को एक ही जीव कहता हुआ स्वद्रव्यादि को ग्रहण करे। जैसे 'सल्लक्षणं द्रव्यम्। (4) वक्तव्यद्रव्यार्थिक- जो द्रव्य से कहने योग्य गुण को ही ग्रहण करे। (5) अशुद्ध द्रव्यार्थिक- जो आत्मा को अज्ञानी कहे। (6) अन्वयद्व्यार्थिक-जो सब द्रव्यों को गुण और पर्याय से युक्त माने। (७)परमद्रव्यार्थिक-जो सब द्रव्यों की मूल सत्ता एक है,ऐसा कहे। (8) शुद्धद्रव्यार्थिक- जो प्रत्येक जीव के आठ रुचक प्रदेशों को शुद्ध निर्मल कहे / जैसे- संसारी जीव को सिद्ध समान बताना। (E) सत्ताद्रव्यार्थिक- जो जीव के असंख्यात प्रदेशों को एक समान माने। (10) परमभावग्राहक द्रव्यार्थिक- जो इस प्रकार माने कि गुण और गुणी एक द्रव्य हैं, आत्मा ज्ञान रूप है। .. पर्यायार्थिक नय के छः भेद- . (1) द्रव्य के पर्याय को ग्रहण करने वाला, भव्यत्व, सिद्धत्व वगैरह द्रव्य के पर्याय हैं। (2) द्रव्य के व्यञ्जन पर्याय को मानने वाला। जैसे- द्रव्य के प्रदेश, परिमाण वगैरह व्यञ्जन पर्याय कहे जाते हैं।