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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला पन को प्राप्त करता है । ये देवत्वादि पर्याय सादि सान्त हैं , उत्पन्न भी होते हैं और उनका अन्त भी होता है। इससे वे तृतीय भङ्ग के अन्तर्गत हैं । भव्य जीव कर्मक्षय करके जब मुक्ति को प्राप्त करता है, तब उसका मुक्तत्व पर्याय उत्पन्न होने से सादि और उसका कभी अन्त न होने से अनन्त अर्थात् सादि अनन्त है। __धर्मास्तिकाय में चौभङ्गी
धर्मास्तिकाय में चारगुण और लोकपरिमाण स्कन्ध ये पांचों अनादि अनन्त हैं । अनादि सान्त भङ्ग इसमें नहीं है। देश प्रदेश और अगुरुलघु सादि सान्त हैं । सिद्ध जीवों से जो धर्मास्तिकाय के प्रदेश लगे हुए हैं, वे सादि अनन्त हैं। इसी तरह अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय में भी समझ लेना चाहिये।
पुद्गलास्तिकाय में चौभङ्गी पुद्गल में चार गुण अनादि अनन्त हैं। पुद्गल के सब स्कन्ध सादि सान्त हैं। बाकी दो भङ्ग पुद्गल में नहीं हैं।
काल द्रव्य में चौभङ्गी काल द्रव्य में चार गुण अनादि अनन्त हैं। भूत काल पयार्य अनादि मान्त है । वर्तमान पर्याय सादि सान्त है और भविष्यत् काल सादि अनन्त है।
जीव में द्रव्य, क्षेत्र,काल, भाव से चौभङ्गी ___ अब द्रव्य,क्षेत्र,काल और भाव में चौभङ्गी बतलाई जाती है। जीव द्रव्य में स्वद्रव्य से ज्ञानादि गुण अनादि अनन्त हैं। जीव जितने आकाश प्रदेशों में रहता है वही जीव का