________________ 406 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला रौद्रध्यान का कारण होने से वस्त्रादि परिग्रह हैं। इसलिये उन्हें छोड़ देना चाहिए। यह कहना भी ठीक नहीं है। शास्त्र में रौद्रध्यान चार तरह का बताया है। (1) हिंसानुबन्धी- हिंसा का सतत चिन्तन / (2) मृषानुबन्धी-असत्य का चिन्तन / (3) स्तेयानुबन्धी-चोरी का चिन्तन ।(४)संरक्षणानुबन्धी-चोरादि को मारकर भी अपने धन को बचाने का चिन्तन। __ यदि रक्षादि की चिन्ता होने से वस्त्रादि संरक्षणानुबन्धी रौद्रध्यान के कारण हैं तो देहादि भी इसीलिये रौद्रध्यान के कारण बन जाते हैं, क्योंकि उन्हें भी अग्नि, चोर, जंगली जानवर साँप, विष और कण्टकादि से बचाने की चिन्ता बनी रहती है / संसार में सोना, पीना, खाना, जाना, ठहरना आदि मन वचन और काया की जितनी क्रियाएं हैं, वे सब असंयत पुरुषों के लिए, जिनका अध्यवसाय ठीक नहीं होता, भय का कारण बन जाती हैं / वे ही संयत और प्रशस्त अध्यवसाय वाले पुरुषों के लिये मोक्ष का साधन होती हैं / इसलिये वस्त्रादि स्वीकार करने पर भीसाधुओं को,जिन्होंने कषाय का मूल से नाश कर दिया है,साधारण मनुष्यों की तरह भय मूर्छादिदोष नहीं लगते। वस्त्रादि परिग्रह हैं, क्योंकि मोदि के कारण हैं, जैसे-सोना चाँदी / अगर इसी अनुमान से वस्त्रादि को परिग्रह सिद्ध किया जाता. है, तो हम भी इसी तरह का दूसरा अनुमान बनाकर कनक और कामिनी को अपरिग्रह सिद्ध कर सकते हैं। जैसेफनक और युवति, जो सहधर्मिणी मानकर ग्रहण की गई है, परिग्रह नहीं हैं, क्योंकि शरीर के लिए उपकारी हैं, जैसे आहार। युवति का शरीर के लिए उपयोगी होना प्रसिद्ध ही है। सोना भी विषनाशक होने से शरीर का उपकारी है।शास्त्र में इसके आठ गुण बताये गये हैं। विषघात, रसायन, मङ्गल, छवि, नय,