________________ 394 भी सेठिया जैन प्रन्थमाला शंका- जीव और कर्म का तादात्म्य मानने से उनका कभी भेद न होगा। इस तरह मोक्ष का अभाव हो जायगा। . . उत्तर- जिस तरह सोने और मैल के आपस में मिले होने पर भी औषधियों द्वारा वे अलग किये जा सकते हैं। इसी तरह ज्ञान और क्रिया के द्वारा कर्म भी जीव से अलग किये जा सकते हैं / मिथ्यात्व आदि के द्वारा जीव के साथ कर्मों का बंध होता है। सम्यग्ज्ञानादि मिथ्यात्व आदि के शत्रु हैं। इसलिये उनसे कर्मों का नाश होना स्वाभाविक ही है। तुमने जो अनुमान बनाया था- कर्म जीव से अलग नहीं होता, क्योंकि दोनों का तादात्म्य सम्बन्ध है। वह भी अनैकान्तिक है, क्योंकि दूध पानी, सोना पत्थर आदि पदार्थ परस्पर तादात्म्य से स्थित होने पर भी अलग अलग हो जाते हैं। इस प्रकार ज्ञान और क्रिया के द्वारा कर्मों का नाश सिद्ध हो जाने पर मोक्ष में कोई अनुपपत्ति नहीं रह जाती। कर्म विषयक विवाद को दूर करके आचार्य ने प्रत्याख्यान के विषय में कहना शुरू किया। तुमने कहा- बिना परिमाण के किया जाने वाला प्रत्याख्यान ही अच्छा है। इसमें 'बिना परिमाण शब्द' का अर्थ क्या है ? ___ क्या जब तक शक्ति है तब तक के त्याग को अपरिमाण कहते हैं, या भविष्य में सदा के लिये किये जाने वाले त्याग को, अथवा परिमाण का निश्चय बिना कियेही जोत्याग किया जाय? पहिले पक्ष में शक्ति ही उस त्याग का परिमाण बन गई / इस तरह जिस बात का निषेध किया जा रहा है वही दूसरे शब्दों में मान ली / जब तक शक्ति रहेगी तब तक मैं इस काम को न करूँगा, इसमें स्पष्ट रूप से समय की अवधि आजाती है। जिस तरह सूर्य की क्रिया से घंटा मिनट आदि का समय