________________ 380 श्रीसेठिया जैन प्रन्धमाला है। सभी नयों का अवलंबन लेने पर ही प्रामाण्य आता है, एकान्त वाद में नहीं। जिनमत को प्रमाण मानना हो तो दो ही राशियाँ माननी चाहिएं। शास्त्र में लिखा है- सूत्र में कहे गये एक भी पद या अक्षर को जो व्यक्ति नहीं मानता है वह बाकी सब कुछ मानते हुए भी मिथ्या दृष्टि है। इस तरह एक पद या अक्षर में भी संदेह होने पर मिथ्यात्व आजाता है। अलग राशि की प्ररूपणा से तो कहना ही क्या ? ____ इस प्रकार बहुत समझाने पर भी जब रोहगुप्त न माना तो प्राचार्य ने सोचा अगर इसे संघ बाहर कर दिया गया तो अपने मिथ्या मत का प्रचार करेगा। बहुत से भोले प्राणी इसके पक्ष में आजायेंगे और सत्यमार्ग छोड देंगे / इसलिए राजसभा में बहुतसी जनता के सामने इसे हराना चाहिए। बहुत से लोग इसकी हार को देख लेंगे तो इसकी बात नहीं मानेंगे।" इसके बाद बलबी राजा के सामने गुरु और शिष्यं का शास्त्रार्थ हुआ। छः महीने बीत गये, दोनों में से कोई नही हारा। राजाने कहा-महाराज?राज्य के कार्यों में बाधा पड रही है, इसलिए आपका शास्त्रार्थ मैं अधिक नहीं सुन सकता / आचार्य ने कहा आपको सुनाने के लिए ही मैंने इतने दिन लगा दिए। यदि नहीं सुन सकते तो कल ही समाप्त कर देता हूँ। - दूसरे दिन सभा में आचार्य गुप्त श्री ने राजा से कहा, राजन्! स्वर्ग, नरक और पाताल में जितनी वस्तुएं हैं, धातु, जीव या मूल से बने हुए जितने पदार्थ हैं, वे सब कुत्रिकापण में मिल सकते हैं। यह बात आप सब लोग जानते ही हैं। यदि उस दुकान से नोजीव नाम की कोई वस्तु मिल जाय तो उसे मानना ही पड़ेगा / कोई भी उसका निषेध नहीं कर सकेगा। अगर