________________ 378 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला noun . को अभ्यागम होने से सुख दुःखादि की व्यवस्था टूट जायगी। शंका--जिस तरह धर्मास्तिकायका प्रदेश उससे अलगन होने पर भी 'नोधर्मास्तिकाय' कहा जाता है। उसी तरह जीवप्रदेश जीव से अलग न होने पर भी नोजीव शब्द से कहा जायगा। उत्तर- यदि इस तरह प्रत्येक प्रदेश 'नोजीव' शब्द से कहा जाय तो एक जीव में असंख्य प्रदेश होने के कारण असंख्य नोजीव हो जायँगे / सभी प्रदेशों के नोजीव होने से जीव का अस्तित्व ही न रहेगा। दूसरी बात यह है कि इस तरह धर्मास्तिकाय आदि द्वयणुक और घटादि सभी अजीवों में प्रदेश भरे होने से 'नोअजीव' शब्द का व्यवहार होगा। अजीव राशिन रह कर सिर्फ नोअजीव राशि रह जायगी। इस तरह 'नोजीव,नोअजीव'दो हीराशियाँ रह जाएँगी। तीन राशियाँ फिर भी नहीं बनेंगी। इसलिये जीवपदेशों को भित्र मानना ठीक नहीं। छिपकली के शरीर में हलन चलन देख कर उसे जीव कहते हैं। इसी तरह जब उस की पूँछ में भी क्रिया पाई जाती है तो उसे जीव क्यों नहीं कहा जाय ? अगर यही आग्रह है कि उसे नोजीव कहा जाय तो घट के प्रदेशको भी नोअजीव कहना चाहिये। इस तरह जीव, अजीव,नोजीव और नोअजीव चार राशियाँ माननी पड़ेंगी। ___ अगर यह कहो कि अजीव के देश, जाति और लिङ्ग अजीव के समान हैं। इसलिये उसे नोअजीव न कह कर अजीव ही कहा जाता है, तो जीव पक्ष में भी यही बात समान है। जीव प्रदेश भी जीव केसमान हैं। उन्हें भी नोजीवन कह कर जीव ही कहना चाहिए। __ छिपकली की कटी हुई पूँछ जीव है क्योंकि उस में स्फुरणादि जीव के लक्षण पाये जाते हैं, जैसे सम्पूर्ण जीव / यदि सम्पूर्ण