________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला लगा। यह साधु है या असाधु?'। जब प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने वाली वस्तुओं में भी इस तरह का सन्देह होने लगा तो अप्रत्यक्ष जीवाजीवादि तत्त्वों में सन्देह होना स्वाभाविक ही था। शंका- जीवादि तत्त्व तो सर्वज्ञ द्वारा कहे गए हैं। इसलिए उनमें सन्देह के लिए स्थान नहीं है / ___ उत्तर- सन्देहशील व्यक्ति के मन में यह सन्देह हो सकता है कि ये तत्त्व सर्वज्ञ द्वारा कहे गए हैं या नहीं / इनका कहने वाला सर्वज्ञ था या नहीं ? सामान्य रूप से साधुओं को जानने का मार्ग भी शास्त्रों में बताया ही है आलयेणं विहारेणं ठाणा चंकमणेण य। सक्का सुविहियं णाउं भासा वेणइएण य // अथोत्- स्थान, विहार, भ्रमण, भाषा और नम्रतादि से साधु अच्छी तरह जाने जा सकते हैं / प्रत्येक स्थान पर सन्देह करने से शय्या, उपधि और आहार आदि लेना भी कठिन हो जायगा / कौन जानता है कि जो आहार लिया जा रहा है वह शुद्ध है या अशुद्ध ? इस तरह बहुत समझाने पर भी वे न माने। ___एक दिन राजा बलभद्र ने उन्हें बुलाया और सब को मरवा डालने की आज्ञा दी। साधुओं ने कहा - राजन् ! हम लोग साधु हैं। हमारे प्राण क्यों लेते हो ? राजा- कौन जानता है आप साधु हैं या चोर ? साधु- हमारे वेश, रहन-सहन और दूसरी बातों से आप जान सकते हैं कि हम साधु हैं। राजा- यह आप लोगों का मत है कि किसी भी बात पर विश्वास मत करो। फिर मैं आपको साधु कैसे मायूँ ? ___ इस प्रकार बहुत समझाने पर वे राजा की बात मान गये। (4) सामुच्छेदिक दृष्टि- वीर निर्वाण के दो सौ बीस साल