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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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पृथ्वी से निकले तो सम्पूर्ण जीवों को निकलने में असंख्यात उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी काल लगेंगे। यह बात नारकी जीवों की संख्या बताने के लिए लिखी गई है। वस्तुतः ऐसा न कभी हुआ है और न होगा । शर्करामभा आदि पृथ्वियों के जीवों की संख्या भी इसी प्रकार जाननी चाहिए ।
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संहनन - नारकी जीवों के छह संहनन में से कोई भी संहनन नहीं होता किन्तु उन के शरीर के पुद्गल दुःखरूप होते हैं ।
संस्थान -- संस्थान दो तरह का है । भवधारणीय और उत्तर विक्रिया रूप | नारकों के दोनों तरह से हुंडक संस्थान होता है । श्वासोच्छ्वास - सभी अशुभ पुद्गल नारकी जीवों के श्वासोच्छ्वास के रूप में परिणत होते हैं।
दृष्टि - नारकी जीव, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि तथा सम्यग्मिध्यादृष्टि तीनों तरह के होते हैं ।
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ज्ञान - रत्नप्रभा में नारकी जीव ज्ञानी तथा अज्ञानी अर्थात् मिथ्याज्ञानी दोनों तरह के होते हैं । जो सम्यग्दृष्टि हैं वे ज्ञानी हैं और जो मिध्यादृष्टि हैं वे अज्ञानी । ज्ञानियों के नियम से तीन ज्ञान होते हैं - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान तथा अवधिज्ञान | अज्ञानियों के तीन अज्ञान भी होते हैं और दो भी । जो जीव असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय से आते हैं वे अपर्याप्तावस्था में दो अज्ञान वाले होते हैं। शेष अवस्थाओं में तीनों अज्ञान वाले होजाते हैं। दो अज्ञानों के समय उनके मतिज्ञान तथा श्रुतअज्ञान होते हैं। बाकी अवस्थाओं में तथा दूसरे मिथ्यादृष्टि जीवों को विभंग ज्ञान भी होता है। दूसरी से लेकर सातवीं नरक तक सम्यग्दृष्टि जीवों के तीनों ज्ञान तथा मिध्यादृष्टि जीवों के तीनों अज्ञान होते हैं।
योग - नारकों में तीनों योग होते हैं।
उपयोग - नारकी जीव साकार तथा निराकार दोनों तरह