________________
भी सेठिया जैन प्रन्थमाला भावार्थः-विना रुकावट सर्वत्र फैलने वाले केवलज्ञानरूपी प्रकाश को धारण करने वाले, सदा उदित रहने वाले, स्थिर तथा त्रिविध ताप से रहित श्री वर्द्धमान भगवान् रूपी अनुपम सूर्य सदा विजयवन्त हैं ॥१॥
जगत का एकमात्र सर्वश्रेष्ठ मङ्गल, समस्त पापों के गाढ़ अन्धकार को नष्ट करने वाली, सूर्य के समान यथार्थ वस्तुस्वरूप को प्रकाशित करने वाली, जिनेन्द्र भगवान् की वाणी सदा उत्कर्षशालिनी हो कर देदीप्यमान है ॥२॥
जो व्यक्ति शुद्ध सम्यग्दर्शन सहित ज्ञान और चारित्र को प्राप्त कर लेता है, दुःखों का हेतु भी यह जन्म उस के लिए कल्याणकारी बन जाता है ॥३॥ _____ सम्यग्दर्शन के विना सम्यग्ज्ञान नहीं होता । विना सम्यग्ज्ञान के सम्यक् चारित्र अर्थात् व्रत और पचक्रवाण नहीं हो सकते। सम्यक्चारित्र के विना मोक्षप्राप्ति नहीं होती और मोक्ष के विना निर्वृतिरूप परमसुख की प्राप्ति असम्भव है ॥४॥