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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह मुलभ बोधिः-परभव में जिन जीवों को जिन धर्म की प्राप्ति
सुलभ हो उन्हें सुलभ बोधि कहते हैं। दुर्लभ बोधिः-जिन जीवों को जिनधर्म दुष्प्राप्य हो उन्हें दुर्लभ बोधि कहते हैं।
(ठाणांग २ सूत्र ) कृष्ण पाक्षिकः-जिन जीवों के अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल से
अधिक काल तक मंमार में परिभ्रमण करना बाकी है । वे
कृष्णपाक्षिक कहे जाते है। शुक्ल पाक्षिक:-जिन जीवों का संसार परिभ्रमण काल अर्द्ध
पुद्गल पगवतन या उमसे कम बाकी रह गया है । वे शुक्ल पाक्षिक कहे जाते हैं।
(भगवती शतक १३ उडेशा १ की टीका) भवसिद्धिक:-जिन जीवों में मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता होती
है वे भवमिद्धिक कहलाते हैं। अभव मिद्धिकः-जिन जीवों में मोक्ष प्राप्ति की योग्यता नहीं है वे अभव मिद्धिक (अभव्य) कहलाते हैं।
(ठाणांग २ सूत्र ७६ )
(श्रावक धर्म प्रज्ञप्ति ६६-६७) आहारकः-जो जीव मचित्त, अचित्त और मिश्र अथवा ओज,
लोम और प्रक्षेप आहार में से किसी भी प्रकार का आहार
करता है । वह अाहारक जीव है। अनाहारकः-जो जीव किसी भी प्रकार का आहार नहीं करता वह अनाहारक है।
विग्रह गति में रहा हुआ, केवली समुद्धात करने वाला, चौदहवे गुणस्थानवर्ती और मिद्ध ये चारों अनाहारक हैं।