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श्री जैन सिद्धान्त बोल मंग्रह
१ कृष्णपक्षा
२ शुक्लपक्षो १ भवमिद्धिक
२ अभवमिद्धिक १ आहारक
२ अनाहारक त्रमः-त्रम नामकर्म के उदय से चलने फिरने वाले जीव को त्रम
कहते हैं । अग्नि और वायु, गति की अपेक्षा त्रम माने
गये हैं। स्थावर:-स्थावर नाम कर्म के उदय से जो जीव पृी, पानी आदि एकेन्द्रिय में जन्म लेते हैं । उन्हें स्थावर कहने हैं।
(ठाणांग पत्र १०१) मून्मः-मूक्ष्म नाम कर्म के उदय से जिन जीवों का शरीर
अत्यन्त मूक्ष्म अर्थात् चर्यचक्षु का अविषय हो उन्हें सूक्ष्म
कहते हैं। बादरः-चादर नाम कर्म के उदय से वादर अर्थान् स्थूल शोर __ वाले जीव बादर कहलाने हैं।
___ (ठाणांग २ सूत्र ७३) पर्याप्तकः-जिम जीव में जिननी पर्याप्तियों मम्भव हैं । वह जब
उतनी पर्याप्तियों पूरी कर लेना है तब उस पर्याप्तक कहते हैं । एकेन्द्रिय जीव स्वयोग्य चारों पर्याप्तियों ( आहार, शरीर, इन्द्रिय, और श्वामोच्छवाम) पूरी करने पर. द्वीन्द्रिय, बोन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और अमंज्ञी पंचेन्द्रिय, उपयुक्त चार
और पांचवी भाषा पर्याप्ति पूरी करने पर तथा मंज्ञी पंचेन्द्रिय उपयुक्त पांच और छठी मनः पर्याप्ति पूरी करने पर पर्याप्तक कहे जाते हैं।
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