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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह लक्षित और मध्य में मेरु पर्वत से सुशोभित जम्बू द्वीप है। इसमें भगत, ऐरावत और महाविदेह ये नीन कर्म भूमि और हैमवत हैरण्यवत, हरिवर्ष रम्यकवर्ष, देवकुरु उत्तर कुरु, ये
छः अकर्म भूमि क्षेत्र हैं। इसकी परिधि तीन लाख मोलह हजार दो सौ मत्ताईस योजन तीन कोम एक सौ अट्ठाईम धनुष तथा माहे नेरह अंगुल से कुछ अधिक है ।
(ठाणांग १ सूत्र ५२)
(सभाप्य तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय ३) ५-प्रदेशः स्कन्ध या देश में मिले हुए द्रव्य के अति सूक्ष्म
( जिसका मग हिस्मा न हो सके ) विभाग को प्रदेश कहते हैं।
(ठाणांग १ सूत्र ४५) ६-परमाणुः स्कन्ध या देश से अलग हुए पुद्गल के अतिसूक्ष्म निश भाग को परमाणु कहते हैं ।
(ठाणांग १ सूत्र ४५)